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अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010
यह उपयुक्त प्रतीत होता है कि हमें जैन परंपराओं में निहित मूलभूत पर्यावरण प्रतिमानों को प्रभावी ढंग से प्रचलित करें। जैन धर्म हमें इस पृथ्वी के छोटे से छोटे प्राणी, वनस्पति और यहां तक की सूक्ष्म जीवाणुओं (माइक्रोब्स) की रक्षा और सम्मान करने
की प्रेरणा देता है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए अत्यंत उपयोगी है। ७. वायु संरक्षण एवं वायुमण्डल में ऑक्सीजन का संतुलन बनाए रखने में जैन धर्म द्वारा
प्रतिपादित दिन में भोजन का विधान एवं रात्रि भोजन का निषेध महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। रात्रि में भोजन निषिद्ध होने से भोजन पकाने के लिए चूल्हे में आग जलाने की आवश्यकता नहीं होती है। परिणामतः कार्बन डाय आक्साईड की मात्रा नहीं बढ़ पाती है। जैन धर्माचार्यों ने कहा है कि हम कभी भी प्रयोजन रहित कोई भी कार्य न करें। अपने असंयमित व्यवहार से पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ न करें। अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति और लोलुपता को नियमित और नियंत्रित करते हुए पर्यावरण को संतुलित बनाए रखें। प्रत्येक जैन व्यक्ति अपने सहज स्वभाव और संरक्षण करते हुए निम्नांकित नियमों का कठोरता पूर्वक और नियमित रूप से पालन करे और स्वयं को भारत का उत्तरदायी नागरिक
बनाऐं:8.1 अपने गन्दे वस्त्र किसी भी प्रवाहित पानी में न धोये ताकि उसमें रहने वाले सूक्ष्म जीवों
की सुरक्षा हो सकें। 8.2 बगैर छना/अशुद्ध जल न पियें ताकि शरीर रोगमुक्त रह सके और आसपास का
वातावरण दूषित होने से बच जाए। संसार के वैज्ञानिक मानते हैं कि जैन धर्म में प्रचलित पानी छानने की प्रथा स्वस्थ शरीर के लिए अत्यधिक उपयोगी है। यह प्रथा
श्रेष्ठ स्वास्थ्य एवं आधुनिक सभ्यता की प्रतीक है। 8.3. किसी जल स्रोत से पानी निकालने छानने के पश्चात् शेष बचे बगैर छने पानी, जिसमें
अनेक जीवाणु रहते हैं, को उसी जल स्रोत के निम्नतम स्तर तक पहुँचा दिया जाय ताकि सूक्ष्म जीवाणु अपने प्राकृतिक हैबीटाट में पहुँच कर जीवित रह सकें और जैविक
संतुलन को बनाए रख सकें। 8.4 नदियों और जलकुण्डों में शव एवं अस्थियों का विसर्जन न करें। जल स्रोतों में कचरा
न बहाएं। 8.5 कोई भी जल की एक बूंद व्यर्थ नष्ट न करें, पेड़-पौधों से व्यर्थ ही फूल या पत्ते
न तोड़ें, विद्युत या किसी भी ऊर्जा की एक यूनिट भी व्यर्थ व्यय या दुरुपयोग न
होने दें। 8.6 जैन धर्म समाज के प्रत्येक व्यक्ति को यह महत्वपूर्ण उपदेश देता है कि वह संपूर्ण
मानव जाति एवं सृष्टि के समस्त जीवों की दीर्घायु की मंगलकामना प्रतिदिन नियमिति रूप से करें। वह परम आराध्य की साक्षी में यह भावना भाये कि वर्षा समय पर और पर्याप्त हो, बाढ़ या सूखा न हो, कोई महामारी न फैले एवं समस्त राजनेता तथा प्रशासनिक अधिकारीगण अपने कर्तव्यों का पालन सच्चाई एवं ईमानदारी से करें।