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अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010
श्रावक धर्म की सम्यक विवेचना का प्रमुख उद्देश्य यह बताना है कि मानव का आचार, विचार और व्यवहार धर्मसम्मत बने क्योंकि धर्म ही शान्ति प्रदाता
जैनधर्म में विभिन्न आचार्यों के श्रावकाचार मिलते हैं जिनमें श्रावक धर्म की विशद व्याख्या शास्त्रीय भाषा में निबद्ध है। आज पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति से प्रभावित व्यक्तियों का आचरण धर्म से दूर होता जा रहा है। व्यक्ति धर्म को विज्ञान की कसौटी पर कसना चाहता है, श्रद्धा गुण लोगों के जीवन से दूर होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में एक ऐसी पुस्तक की आवश्यकता महसूस की जा रही थी जो श्रावकों के षट्कर्मों से लोगों को जन सामान्य की भाषा में शास्त्रोक्त उद्धरणों को देकर सरल ढंग से समझा सके। सुयोग्य लेखक, संपादक तथा विद्वान् डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन ने यह पुस्तक लिखकर एक महान् कार्य किया है।
इस पुस्तक में विभिन्न ग्रंथों के उल्लिखित विषय संदर्भित संस्कृत तथा प्राकृत के 217 श्लोक, हिन्दी के 61 पद्यांश, 2 भजन, 12 नीतिश्लोक के साथ अनेक शास्त्रोक्त परिभाषाओं के साथ भारतीय तथा विदेशी विद्वानों, शोध कर्ताओं और चिकित्सकों के विभिन्न विचारों को प्रंसगानुरूप प्रस्तुत कर विषय को उपयोगी तथा रुचिकर बनाने में लेखक ने पर्याप्त ध्यान दिया है। लेखक जैन धर्म के प्रति समर्पित विद्वान् हैं अतः उन्होंने यह पूरा पूरा ध्यान रखा है कि कोई बात ऐसी न दिखाई दे जो जैन धर्म के विपरीत हो। श्रावकगण यदि इस पुस्तक का स्वाध्याय कर जीवन में थोडा सा भी परिवर्तन धर्म के अनुरूप कर सकें तो लेखक का प्रयास सफल रहेगा। निःसन्देह लेखक का प्रयास अत्यन्त सफल, सार्थक तथा युगीन परिस्थितियों के अनुकूल है।
श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् ने इस कृति का प्रकाशन कर श्रावकों के प्रति अपने दायित्वबोध का सम्यक् निर्वाह किया है। एक बार पुनः कृतिकार को सुन्दर तथा सुयोग्य लेखन के लिए बधाई।
-पं. कोमलचन्द जैन
टीकमगढ़ (म.प्र)