Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 20
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] कतिसंचिया-कतीति सङ्ख्यावाची, ततश्च कतित्वेन अधः सङ्कुचितम् उपरि सञ्चिताः-एकसमये सङ्ख्यातोत्पादेन पिण्डिताः विस्तीर्णमुत्तानीकृताऽर्द्धकपित्थसंस्थानसं-स्थितम्। कतिस-ञ्चिताः। भग०७९६| सूर्य. २७४। कती- 'कति' इत्यनेन सङ्ख्यावाचिना व्यादयः कदर्थितः- हीलितः। आचा० ४३० सङ्ख्या-वन्तोऽभिधीयन्ते। स्था० १०५ कदल- वनस्पतिविशेषः। भग०८०३| कृतमस्यास्तीति कृती-पुण्यवान् परमार्थपण्डितो वा। कदली-वल्लिविशेषः। प्रज्ञा० ३१, ३३| आचा० ३०० सूत्र. २९८। सङ्ख्यावाची। भग० ७९९। लतावलयभेदः। उत्त० ६९२ नन्दी० २१५ कत्त-चर्मकम्। निशी० ५६ आ। कदलीथंभो-कदलीस्तम्भः। प्रज्ञा० २६६। कत्तरी-कर्तरी। आव०६२७। कदलीहरं-कदलीगृहम्। आव० १२३ कत्तलिकारूवा-पञ्चलतिकाः। जम्बू. २२३। | कदशनम्- निष्ठानं-सर्वगणोपेतं संभृतमन्नम्, कत्तविरिए- कार्तवीर्यः। सुभूमचक्रवर्तिपिता। आव० रसनियूंढम्- एतविपरीतं कदशनम्। दशवै० २३१। १६२। स्था० ४३० कद्दम-कर्दमः। यत्र प्रविष्टः पादादिर्नाक्रष्टुं शक्यते कत्तवीरिओ-सुभूमचक्रवर्तिनः पिता। सम० १५२। कष्टेन वा शक्यते। स्था० २३५। कार्तवीर्यः-अनन्तवीर्यपुत्रः। आव० ३९२। कार्तवीर्यः- द्वितीयोऽनुवेलन्धरनागराजः। जीवा० ३१३। कईमो संजातकामः-जातेच्छः। भग० १४। गोवाटादीनाम्। स्था० २१९। कर्दमः नदीवि-दरकलक्षणः। कत्ताविय-कर्तापितम्। कर्तनं कारितम्। आव०४१८५ ज्ञाता०६७। कत्ति-कत्तिकडं-क इति कृतम्। आव० ७८२ छदडिया कद्दमए-कमर्दमकः। स्था० २२६। आग्नेय्यां दिशि (सादडी)। निशी० ४२ । वर्तमाने विद्युप्प्रभपर्वते नागराजः। वरुणस्य कत्तिओ-कार्तिकः। राजाभियोगविषये हस्तिनापुरे । पुत्रस्थानीयो देवः। भग० १९९। श्रेष्ठी। आव० ८१११ श्रेष्ठिविशेषः। निर० २२ कद्दमजलं-कर्दमजलम्। यद घनकर्दमस्योपरि वहति। कत्तिय-कृत्तिका। प्रथमं नक्षत्रम्। स्था० ७७। भरतक्षेत्र ओघ० ३२ आगमिष्यन्त्यामुत्सर्पिण्यां चतुर्विंशतिकायां कदिवसं-कस्मिन् दिवसे। मरण। षष्ठतीर्थकरस्य पूर्वभवनाम। सम० १५४। कनंगरा-काय-पानीयाय नङ्गराःकत्तियाणक्खत्ते- कृतिकानक्षत्रम्। सूर्य० १३० बोधिस्थनिश्चलीकरणपा-षाणस्ते कनङ्गराः कानगरा कत्ती- कतरिका (कृत्तिका)। स्था० २३४। चम्म। निशी | वा, ईषन्नङ्गर इत्यर्थः। विपा०७१। १८ अ। कतरी, चर्मपञ्चके पञ्चमो भेदः। आव०६५२ | कनकरसस्तवकाञ्चितानि-कनकखचितानि। आचा. कत्थं- यत्र कथिकादि गीयते तत् कथ्यम्। जम्बू. ३९| ३९४१ कत्थः-अनन्तजीववनस्पतिभेदः। आचा०५९। कनकालुकः-भृङ्गारकः। जम्बू. ५६। भृङ्गारः। जम्बू. कत्थपुडिय- गान्धिकः। निशी० ३५६अ। ર૬રા. कत्थुरी- गुच्छाविशेषः। प्रज्ञा० ३२। कनकावलि-तपोविशेषः। व्यव० ११३आ। कनकावलिःकत्थुल- गुल्मविशेषः। प्रज्ञा० ३२ आभरणविशेषः। प्रज्ञा० ३०७ कत्थुलगुम्मा-कस्तुलगुल्माः। जम्बू० ९८१ कन्दलीकन्दक-सचित्तं तरुशरीरम्। आव० ८२८। कत्थे-कथायां साधुकथ्यं ज्ञाताध्ययनवत्। स्था० २८८।। कन्दुकगतिः- सर्वेण सर्वत्रोत्पद्यते विमुच्यैव कथगो-कथकः। जीवा. २८११ पूर्वस्थानम्। भग० ८४। गतिविशेषः। स्था० ८९। कथनम्-उपदेशः। आव०६०५ कन्न- कर्णः। पिण्ड० १५३ कदंबचीरिका-शस्त्रविशेषः। स्था० २७३। | कन्नकुज्जं- कन्यकुब्जम्। यत्र मृगकोष्ठकनगरे कदंबपुप्फसंठिय- कदम्बपुष्पसंस्थितम्। कदम्बपुष्पवद् | जितशत्रुराज्ञः कन्या यामदग्न्येन पूर्वं कुब्जीकृताः। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [20] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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