Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 50
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] वादयविशेषः। स्था०६३।। किंते- तद्यथार्थः। औप० ५४। तद्यथा। जम्बू. १९२॥ काहामि-करिष्यामि। उत्त०४३३। प्रश्न. १५९। किंभूतान्। ज्ञाता० २३०१ काहारो-जलवाहकः। दशवै० ५७ किंत्थुग्धं-किंस्तुध्नं-एकादशमं करणम्। जम्बू० ४९३। काहावणं-कार्षापणम्। उत्त० २७६। कार्षापणः-द्रम्मः। | किंनए-किण्वं-अनन्तजीववनस्पतिभेदः। आचा० ५९। प्रश्न. ३० किंनर-किन्नरेन्द्रः। जीवा० १७४। किन्नरःकाहितो-सज्झायादिकरणिज्जे जोगे मोत्तुं जो दक्षिणनिकाये पञ्चमो वाणव्यन्तरेन्द्रः। भग० १५८ देसकहादिक-हीतो कहेति सो काहितो। निशी० ९१ आ। किन्नरभेदविशेषः। प्रज्ञा०७०वाणव्यन्तरभेदविशेषः। काहिया-धम्मत्थकामेसु अण्णाओ विकहाओ कहेंता प्रज्ञा०६९। चमरेन्द्रस्य रथानीकाधिपतिर्देवः। स्था० ३०२, कहिया भवंति। निशी. ९| ४०६। इन्द्रनाम। स्था० ८५। किन्नरः-वाद्यविशेषः। काहीआ-कथिका। गच्छा०। देवविशेषो वा। प्रश्न०७०| देवविशेषः। भग० ४७८१ काहिउ-कथकः। ओघ० १५० किंनरकण्ठ-किन्नरकण्ठप्रमाणो रत्नविशेषः। जीवा. काहिए-। ओघ० १५० पासणिए। निशी० २९२ अ। २३४१ काहीति-करिष्यति। स्था० ४९६| किंनरी- देवीविशेषः। मैथुने दृष्टान्तः। प्रश्न. ९० किं- प्रश्ने क्षेपे वा। आचा० १६५। प्रश्ने। ज्ञाता० १४९। किन्नरोत्तमा-किन्नरभेदविशेषः। प्रज्ञा०७० क्षेप-प्रश्ननपुंसकव्याकरणेषु। आव० ३७९। किंपगारे-किंप्रकार:-किंस्वरूपः। जीवा०६५ किंकमे-किंकमे, अन्तकृद्दशानां षष्टमवर्गस्य किंपत्तियं-कः प्रत्ययः कारणं यत्र तत् किम्प्रत्ययम्। द्वितीयमध्ययनम्। अन्त०१८ भग० १८१, १३८१ किंकम्मय-किंकर्मकः। आव० ४०९। किंपभासई-किं-कुत्सितं प्रकर्षेण भाषते इति किंकर-भार्यादेशकरः-अन्वर्थः पुरुषविशेषः। पिण्ड. किंप्रभाषते। उत्त०४४३ १३५। किङ्कराः-प्रतिकर्मपृच्छाकारिणः। जम्बू० २६३। किंपाकफलः- फलविशेषः। आचा० १६४। किकरा-किङ्करभूताः। प्रज्ञा० ८६। जीवा० १६० किंपाग-किम्पाकः बृक्षविशेषः। उत्त० ६२८, ४५४। फलप्रतिकर्मपृच्छा-कारिणः। भग० ५४७। आदेशसमाप्तौ विशेषः। आव० ३८५ पुनः-प्रश्नकारी। प्रश्न. ३९| | किंपुरिसा- वाणव्यन्तरभेदविशेषः। प्रज्ञा० ६९। किंपुरुषःकिंकिणी-किकिणी, क्षुद्रघण्टिका। भग. ३२२१ प्रश्न उत्तरनिकाये पञ्चमो वाणव्यन्तरेन्द्रः। स्था० ८५, ३०२। ७। क्षुद्रघण्टा घण्टिका वा। जम्बू०४२९ भग० १५८ किंपुरुषः-किन्नरेन्द्रः। जीवा. १७४। किंकिन्धपुरं-आदित्यरथराजधानी। प्रश्न०८९ कण्ठप्रमाणो रत्नविशेषः। जीवा. किंखाइंति-अथ किं पुनरित्यर्थः। भग० १४९। २३४१ किंगिरिडा-त्रीन्द्रियविशेषः। प्रज्ञा० ४२॥ किंपुरुषा- किन्नरभेदविशेषः। प्रज्ञा० ७०। किंचनं- किञ्चनं काञ्चनं-हिरण्यादि, अल्पमपि वा। किंपुरुषोत्तमा–किन्नरभेदविशेषः। प्रज्ञा०७० आव०१५५ किंभयाः- कस्माद भयं येषां ते, कतो बिभ्यतीत्यर्थः। किंचि-काञ्चिः मूशलमूलस्थलोहकटी। पिण्ड० १६४। स्था० १३५ किंचूणा- किञ्चिदूना-एकत्रिंशत्कवला। स्था० १४९। किंमए- किंमयः-किंविकारः। जीवा० ११० ऊनोदरतायाः पञ्चमो भेदः। इत्थं पञ्चविंशतेरारभ्य किंमज्झं-किंमध्यं-किंशब्दस्य क्षेपार्थत्वात् असारम्। याव-देकत्रिंशत्तावत्किञ्चिदूनोदरता। दशवै० २७५ प्रश्न. १३७ किंचूणोमोअरिआ-किञ्चिन्न्युनावमोदरिका-एकत्रिंशतो | किंलेसे-का-कृष्णादिनामन्यतमा लेश्या येषां ते द्वात्रिंशत एकेनोनत्वात्। औप० ३८४ किंलेश्या। भग. १८८१ किंणापउल-वनस्पतिविशेषः। भग० ८०४। | किंशुककुसुम- पलासकुसुमम्। जीवा० १९११ किपरु मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [50] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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