Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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गीयत्थ- गीतार्थः
१९६] वस्त्रपात्रपिंडैषणाध्ययनादिच्छेदसूत्राणि च
गुंजिए- गुञ्जितं-निर्घातविकारो गुञ्जावद्गुञ्जितो सूत्रतोऽर्थतस्तदुभयतो वा येन सम्यगधीतानि स । महाध्वनिः। आव० ७३६। गीतार्थः। व्यव. २४ आ। स्वयं व्यवहारमवबुद्ध्यते | गुंजितं-निर्घातः-तस्सेव विकारो गुंजावत्। गुंजमानो प्रतिपदयमानो वा प्रतिपदयते व्यवहारं सः गीतार्थः। महाध्वनिः। निशी. ७०आ। व्यव० ९आ। सूत्रार्थ-तद्भयविदः, अन्यथा
गुंजीवल्ली-वल्लीविशेषः। प्रज्ञा. ३२१ हेयोपादेयपरिज्ञानयोगात् ते एतादृशा एवंविधा गीतार्था | गुंज्जित-गुंजावत् गुंजमानो महाध्वनिगुंजितम्। व्यव० गणावच्छेदिनः। व्यव० १७२ अ।
२४१ आ। गीयरइपिय-गीतरतिप्रियः-गीतेन या रती-रमणं क्रीडा सा | गुंठा-मायाविनः। व्यव. २५५ गुंठा-माया। व्यव. २५६। प्रिया येषां गीतरतयो वा लोकाः प्रिया येषां ते। औप० ९२ | गुंठो- वाहणा गुंठादि गुंठो घोडगो। निशी० ३७ आ। गीयरई- गीतरतिः-दक्षिणनिकाये अष्टमो व्यन्तरेन्द्रः। घोटको महिषो वा। बृह० १२५आ। भग० १५८१
गुंडिज्जइ-गुण्डयते। आव० ६२५१ गीयसई- गीतशब्दं-पञ्चमादिकृतिरूपम्। स्था० ४०६। | गुंडिय- गुण्डित-परिकरिता। प्रश्न. ४७। गुण्डितः। ज्ञाता० गीया-गीतार्था-वृषभाः। व्यव० २५१|
६१। गुंगुयंता-कान्दिशीकाः। उत्त. १७९|
गुंद- वृक्षफलविशेषः। आव० ८२८१ गुंजंत- गुञ्चन्तः शब्दविशेषं विदधानाः। जीवा. १८८१ गुग्गुलभगवं- गुग्गुलभगवान्। आव०७१२। शब्दायमानाः। ज्ञाता०२७।
गुच्छ-वृन्ताकीप्रभृतिः। जीवा० २६, १८८1 गुच्छः-वृन्तागुंज-गुञ्जा-रक्तिका। जम्बू० ३४।
कीसल्लकीकर्पास्यादिकः। आचा० ३०| पत्रसमूहः। भग. गुंजद्धरागे- गुञ्जा तस्या अर्धरागो गुजार्धरागः। प्रज्ञा० ३७। जम्बू. २५। गुच्छाः -वृन्ताकीप्रभृतयः। भग० ३०६| ३६१
जम्बू. ३०| जीवा० २६। गुंजा- गुञ्जा-भम्मा। आचा०७४। आतोद्यविशेषः। प्रश्नः | | गुच्छगलइअंगुलिओ- अङ्गुलिभिातो-गृहीतो गोच्छको ५१| चणोठिया। अनुयो० १५५
येन सोऽयममुलिलातगोच्छकः। उत्त० ५४०। गुंजालिका-सारिण्येव वक्रा। अन्यो० १४९।
गुच्छय- गोच्छकं-पात्रकोपरिवर्त्यपकरणम्। उत्त० ५४० गुंजालिकाः- दीर्घा गम्भीराः कुटिलाः लक्ष्णाः | गुच्छा- वृन्ताक्यादयः। औप० ८। गुच्छाःजलाशयाः। आचा० ३८२
वृन्ताकीप्रभृतयः। प्रज्ञा० ३०। ज्ञाता०२८। गुंजालिया- गुजालिकाः वक्रसारिण्यः। भग० २३८ औप० | पल्लवसमूहाः। ज्ञाता० २८॥ ९३| वक्रा नदी। प्रज्ञा० २६७। वक्रसारणी। प्रश्न०६० |गच्छिय-सजातगच्छम्। भग० ३७ वक्रसारिणी। ज्ञाता०६७ नदय एव वक्रा गुञ्जालिकाः। | गुज्झ- गुह्यं-रहस्यम्। विपा० ४०| प्रज्ञा० ७२| अन्नेऽन्ने कवाडसंजुत्ताओ गुंजालिया लज्जनीयव्यवहारगोपि-तम्। ज्ञाता० १२। ग्ह्य भन्नंति। निशी. ७० आ।
गोपनीयत्वात्, अब्रह्मणस्य चतुर्विं-शतितमं नाम। गुंजालियाओ- सारण्यस्ता एव वक्राः गुञ्जालिकाः। प्रश्न०६६। गुह्यःबहिर्जनाप्रकाशनीयः। राज०११६| जम्बू०४१।
गुह्य-लज्जनीयव्यवहारगोपनम्। भग०७३९। गुंजावाए- गुजा-भम्मा तदवत् गुञ्जन् यो वाती स गुज्झक्खिणी-स्वामिनी। बृह० १७१ आ। गुञ्जावातः। आचा०७४। यो गुञ्जन्-शब्दं कुर्वन् वाति | गुज्झगं- गुह्यकम्। ओघ० १६०।। गुञ्जावातः। जीवा० २९। प्रज्ञा० ३०
गुज्झगा-गुह्यकः। भवनवासिनः। दशवै० २४९। गुंजावाता- ये गुञ्जतो वान्ति। उत्त० ६९४। | गुज्झखगो- गुह्यकः-देवः। आव० ६३४। देवविशेषः। गुंजावाय- गुञ्जन् सशब्दं यो वाति स गुञ्जवातः। भग० | पिण्ड० १३१। वैमानिकः। आव० ८१३॥
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]

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