Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 149
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] चर्चः-संहितादि चर्चः। स्था० ३८१ तोरणं। निशी० ६३आ। चर्मकारकोत्थः- क्रोधविशेषः। आव० ३९११ चलनकालः- उदयावलिका। भग०१५ चर्मदलं- चतुर्थं क्षुद्रकुष्ठम्। आचा० २३५। प्रश्न० १६१| चलमाणे-चलत्-स्थितिक्षयादुदयमागच्छत् चर्मपक्षिणः- चर्ममयपक्षाः पक्षिणः, वल्गुलिप्रभृतयः। विपाकाऽभिमु-खीभवद्यत्कर्मेति प्रकरणगम्यं तत्। स्था० २७३। खचरप्रथमो भेदः। सम० १३५१ भग०१५ चर्मपक्षौ-चर्मात्मको पक्षौ चर्मपक्षौ। प्रज्ञा० ४९। चलसत्ते-चलं-अस्थिरं परीषहादिसम्पाते ध्वंसात् सत्त्वं चर्या-वहनं गमनमित्यर्थः। स्था० २४० यस्य स चलसत्त्वः । स्था० २५१| चलंतं-स्वस्थानादन्यत्र गच्छन्। स्था० ३८५ चलहत्थो-णाम कंपणवाउणा गहितो। निशी० १०१। चलंतसंधि-चलन्तः-शिथिलीभवन्तः सन्धयो चलाचल-चलाचलं-अप्रतिष्ठितम्। दशवै. १७५ यस्मिंस्तत्। उत्त० ३३४।। चलिः- परिस्पन्दनार्थः। दशवै.७० चलं- श्लथम्। स्था० २०९। गन्तं पथि प्रवृत्तः। ओघ० चलिअ-चलितं-विलासवद्गतिः। जम्बू. २६५। २३। अनियतविहारित्वात्। आचा० २५८1 अवधिः, चलिए- चलनं-अस्थिरत्वपर्यायेण वस्तुन उत्पादः। भग० अनवस्थि-तश्च। आव० २८। गमनाभिमुखम्। ओघ. १० १४१| चलः-गमनक्रियायोगात् हारादिः। आव. १८५। चलेमाणे- गच्छन्। आचा० २६५) चलो वायुराशुग-त्वात्। जम्बू० २६५) चवइ-च्यवते-अपयाति-चरति। आचा० ४०९। चलइ-चलति-कम्पते। जीवा० ३०७। स्थानान्तरं चवणं-च्यवनं-पातः। आचा० १६३। उद्वर्तना। जीवा० गच्छति। भग० १८३ १३५ चलचल-तवए पढमं जं घयं खित्तं तत्थ अण्णं घयं अप- | चवल-चपलं-उत्सुकतयाऽसमीक्षितम्। प्रश्न. ११९| चपक्खिवंती आदिमे जे तिण्णि घाणा पयतिते चलचलेति। लत्वं कायस्य। ज्ञाता०९९| चञ्चलम्। ज्ञाता० १३८। निशी. १९६ आ। हस्तिग्रीवादिरूपकायचलनवत्। प्रश्न. १२९| चापल्यंचलचवलं-चलचपलं-अतिशयेन चपलम्। प्रज्ञा० ९६। कायौत्सुक्यम्। जम्बू० ३८८1 चपला कायतोऽपि। ज्ञाता० जीवा० १७२। ३६| चपलः। आव०१८५ चलणं-चलनं-मोटनम्। ओघ. १७७ चलनः-चलन- चवलगं-चपलकम्। आव०६२२॥ विषयको भगवत्याः प्रथमशतके प्रथमोद्देशकः। भग०५ चवलगा-धान्यविशेषः। निशी. १४४ आ। चलणमालिआ-चरणमालिका-संस्थानविशेषकृतं चवला-चपला-कायचापलोत्पेता। भग० १६७। पादाभरणं लोके पगडां इति प्रसिद्धम्। जम्बू. १०६। चवलाए- चपलया-कायचापल्येन। भग० ५२७। चलणाओ-चलनकः, भगवत्याः प्रथमशतकदशमोद्देशः। चवलिअ-चपलितः। जम्बू० १०१। भग.५ चवेडा-चपेटा-करतलाघातः। उत्त०६२ चपेटा-पञ्चाङ्गचलणाहण- पारिणामिकबुद्धौ षोडशो दृष्टान्तः। नन्दी. लीप्रहारः। उत्त०४६१। १६५ चव्वायं- चार्वाकः-रोमन्थायमाणः। व्यव० २५५ चलणि-चलनप्रमाणः कर्दमश्चलनीत्युच्यते। भग० चषकः-भाजनविधिविशेषः। जीवा. २६६। चसक-चषकः-सुरापानपात्रम्। जम्बू. १०१। चलणिगा-मल्लचलणाकृतिः। निशी. १७९ आ। चसूरि-विस्तारः। भग० ७६०। विस्तरः। ओघ० ५॥ चलणी-चलनी। ओघ. २०९। चरणमात्रस्पर्शी कर्दमः। अनुयो० १३९। नन्दी० ३३॥ जीवा० २८२ चाइया- शकिताः। उत्त०६२७। चलत-ईषत्कम्पमानम्। जीवा० १८८1 चाई-त्यागी-सङ्गत्यागवान्। भग० १२२ चलतोरणं-जेण वामं दक्खिणं वा चालिज्जति सो चल- | सर्वसङ्गत्यागः, संविग्नमनोज्ञसाधदानं वा। प्रश्न اوا30 मनि दीपरत्नसागरजी रचित [149] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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