Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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१५२
जयंती-सयाणीयभगिणी। बृह. १६८ अ। जयन्ती राज- जयसुन्दरी- गर्भाधानपरिरूपमूलदवारविवरणे धानी। जम्बू० ३५७। वैजयन्ती राजधानी। जम्बू०३५७) सिन्धुराजपत्नी। पिण्ड० १४५ उत्कृष्टमालापहृते सुरदत्तस्य वास्तव्यापुरी। पिण्ड. जयहत्थि-जयहस्ती-पट्टहस्ती। आव० ७१६) १०९। सम० १५१। स्था० २३१, २०४। महाग्रहस्य जयहत्थी-जयहस्ती। उत्त. ३००। तृतीयाऽग्र-महिषी। भग० ५०५, ५५६। जयन्ती। जम्बू० जया-यस्मादर्थे। दशवै०१५७ औषधिविशेषः। उत्त. ३९१, ५३ नन्दनबलदेवमाता। आव. १६२१
४९०। जया-वासुपूज्यमाता। आव० १६०| सम० १५१, उत्पलभगिनी। आव. २०२२ अकम्पितमाता। आव० २५५
जर-जरा-वयोहानिलक्षणा। प्रज्ञा० ३। जय-पराभिभवः। स्था० २५०। यतः-प्रयत्नवान्। आव. जरकुमार-जराकुमारः-कृष्णवधकः। अन्त०१६। वसुदेव२८६। यतं-गवाक्षकादीनामवलोकयन। दशवै. २३११ पुत्रः। निशी. १९४ आ। चक्र-वर्तिविशेषः। उत्त० ४४८१ यतः-यत्नवान्। ओघ० । | जरग्गहिया-ज्वरग्रहिताः-सामायिकलाभे दृष्टान्तः। ३७। यतं-तदुद्वेगमनुत्पादयन्। दशवै० १८४। अत्वरितम् आव०७५ । दशवै. १७८जयनामा एकादशचक्रवर्ती। आव० १५९| | जरढं-जरठम्। जीवा. १८८ पुराणम्। औप०७ जयई-यजन्ताम्। उत्त० ३७१।
जरठानि, पुराणत्वात् कर्कशानि। जम्बू. २९। जयकुञ्जर-कुञ्जरमुख्यः। भग०
जरते-जरकः। स्था० ३६५ जयघोस-जयघोषः-ब्रह्मगुणनिरूपेण विप्रः। उत्त० ५२० जरला- चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषाः। जीवा० ३२ जयणं-यतनं-प्राप्तेषु संयमयोगेषु प्रयत्न-उद्यमः। जरा-जरा-वयोहानिलक्षणा। दशवै० २३३। वार्धक्यम्। प्रश्न.१०९।
भग. १९७। वयोहानिलक्षणा। आव० १४८ जयणा-तिपरिखा अ लंभे पछा पणगहाणी। बृह. १५९ जराउ- जरायुः-गर्भवेष्टनम्। प्रश्न. ९० आ। तिपरियट्ट काऊण अप्पदुप्पणो पच्छा पणगादि जराउय-जरायुवेष्टिता जायन्त इति जरायुजाः, पडिसेवणा पडिसेवति एस जयणा। निशी. ३७ आ। गोमहिष्य-जाविकमनुष्यादयः। दशवै० १४१| निशी० १३६ अ। जहा जीवोवघातो न भवतीत्यर्थः। मनुष्यादयः। प्रश्न. ९०१ निशी. १८९ अ। असड्ढभावस्स अववादपत्तस्स जो जराकुणिम- जराकुणपश्च-जीर्णताप्रधानशब्दः। भग. अकप्प-पडिसेवणे जोगो तत्थिमं रागदोसवियत्तत्तणं सा जयणा। निशी. १४८ आ। यतना
जराकुमार- वासुदेवजेट भाऊ। बृह० ११३ अ। बहदोषत्यागेनाल्पदोषाश्रयणम्। औप०४८1 उत्त० ५१५ जराजुण्णा-जराजीपर्णाः। व्यव० २९९ अ। प्रयत्नकरणलक्षणा। दशवै०७४।
जराघुणियं-जराघुर्णितम्। उत्त० ३२९। पृथिव्यादिष्वारम्भपरिहारयत्नरूपा। दशवै. १२०० जरासन्ध-नृपविशेषः। प्रश्न. ९०| जरासन्धः। आव. जयणाए-जयिन्या विपक्षजेतृत्वेन। भग. ५२७।
३६५। राजविशेषः। दशवैः ३६। राजगृहनगरनायको जयति-कर्मक्षपण उद्यतः। ओघ० २२०
नवमः प्रतिवा-सुदेवः। प्रश्न०७५ अप्रमादविषये इन्द्रियविषयकषा
राजगृहनगरे राजा। आव० ७२१॥ यघातिकर्मपरिषहोपसर्गादिशत्रुगणपरिजयात् जरासिंधु-जरासिन्धः-राजगृहे नृपति। उत्त० ४९० सर्वानप्यतिशेते तं (प्रति प्रणतोऽस्मि)। नन्दी० ३। ज्ञाता० २०९। जरासिन्धुः-कृष्णवासुदेवशत्रुः, नवमः जयद्दह- हस्तीनागपुरे राजकुमारः। ज्ञाता० २०८। प्रतिवासुदेवः। आव० १५९। जयनंदा-जगन्नन्द जगत्समृद्धिकर। जम्बू० १४३। | जरु-जरायुः। आव० ७४२। जयसंधी-जयसन्धिः -अलोभोदाहरणेऽमात्यः। आव. | जरुला- चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषः। प्रज्ञा० ४२॥ ७०१॥
| जरो-ज्वरः। प्रश्न. १६)
। ४६९।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[178]
"आगम-सागर-कोषः" [२]

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