Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 124
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] २० षष्ठः कल्पवृक्षः। आव० १११॥ यदवंशदलमयं महद्भाजनं तदगोकलिजंडल्लेति। उपा० गेहावणसंठिय- गृहयुक्त आपणो गृहापणोवास्तुविद्याप्रसि-दस्तस्येव संस्थितं-संस्थानं यस्या सा | गोकुलं- परग्रामदूतीत्वदोषविवरणे ग्रामविशेषः। पिण्ड. गृहापणसंस्थिता। सूर्य०६९। १२७ गेहावणाइ- गेहेषु आयतनानि आपतनानि वा गोक्षुरकं-त्रिकण्टकम्। ओघ० १२४। उपभोगार्थमाग-मनानि। जम्बू० ११९। गोखीरफेणो- गोक्षीरफेनः। जीवा० २७२। गेहावणो- गृहयुक्त आपणो वास्तुविद्याप्रसिद्धः गोधायको- गोघातकः। आव० ३९१। गृहापणः। सूर्य०६९। गोचरः-विषयः। आव० ५८९। गेही- गृद्धिः-अप्राप्ताकाङ्क्षा। प्रश्न. ९७। अप्राप्तस्य गोच्छ-भाजनवस्त्रविशेषः, वक्ष्यमाणलक्षणं प्रमार्जयति। प्राप्ति-र्वाञ्छा। प्रश्न. ४४| विषयाभिकाक्षा। उत्त. ओघ. ११७ २६४ गोच्छओ- गोच्छकः-पात्रवस्त्रप्रमार्जनहेतुः गेहिए-गेहकः-भर्ता। उत्त. १३७। कम्बलशकलरूपः। प्रश्न. १५६। कंबलमयो बद्धपात्रोपरि। गेही- गृद्धिः-प्राप्तार्थेष्वासक्तिः । भग० १७३। बृह० २३७ । गोंड-म्लेच्छविशेषः। प्रज्ञा०५५। गोच्छकः- यः पात्रकस्योपरि दीयते सः। ओघ. १९९। गोंफा- गुल्फौ-घुण्टको। प्रश्न० ८० गोच्छिया-जातगुच्छाः। ज्ञाता० ५ गो- परित्थगतो लोगं तं गच्छतीति। दशवै. १०३। गोश- | गोजलोया-द्वीन्द्रियजन्तुविशेषः। प्रज्ञा०४१। जीवा० ३१। ब्देन गावोबलिवर्दाः। ब्रह. १५७ आ। गो-गाविओ। निशी० | गोजिब्भा- गोजिह्वा। प्रज्ञा० ३६७। १३७ अ। गोजूति- गोचरं। निशी. १४४ अ। गोअ-गोत्रं-गुणनिष्पन्नाभिधानम। औप०५७। गोज्ज-नर्तकः। दशवै०४९। गोअम गोज्झपेक्खिया-नृत्यविशेषप्रेक्षिका। आव. ९२। विचित्रपादपतनादिशिक्षाकलापय्क्तवराटकमालिका- गोडें- गोष्ठं-गोकुलम्। आव०७१९। दिचर्चितवृषभकोपायतः कणभिक्षाग्राहिणो गोतमाः। गोट्ठामाहिल- गोष्ठमाहिलः यः स्पृष्टाबद्धप्ररूपकः। उत्त. अनुयो. २५। गौतमः। आचा० ३५९। गौतमः-आगम १५३। अर्थाज्ञाविराधनायां दृष्टान्तः। नन्दी. २४८१ प्रसिद्धो गणधरविशेषः। आव०४१३। गोष्ठा-माहिलः यस्मादबद्धिका उत्पन्नाः स आचार्यः। गोअरे-सामायिकत्वाद् गोरिव चरणं गोचरः। दशवै० १८५ आव० ३१२। गोष्ठमाहिलः-गच्छप्रधानः श्रावकः। आव. गोउरं- गोभिः पूर्यत इति गोपुरं-पुरद्वारम्। जीवा० २७९। ३०८ निशी० ३३५आ। प्रतोली कपाटो वा, परदवारम्। प्रश्न० ८गोपरं- | गोहि- समवयसां समुदायो गोष्ठी। दशवै० २२॥ नगरप्रतोली परद्वारम्। भग० २३८५ जनसमुदाय-विशेषः। ज्ञाता० २०६। गोउलं-घोसं। निशी ७०आ। गोठ-गोष्ठः-गोष्ठामाहिलः-अभिनिवेशे दृष्टान्तः। व्यव० गोकण्णो- गोकर्णः-अन्तरदवीपविशेषः। जीवा० १४४ १७९ । द्विख-रचतुष्पदविशेषः। प्रश्न०७जीवा० ३८1 गोहिदासी-गोष्ठादासी। आव २०११ गोकन्न-द्विखुरचतुष्पदविशेषः। प्रज्ञा०४५। गोद्विधम्मो- गोष्ठीधर्मः-गोष्ठीव्यवस्था। दशवै. २२ गोकन्नदीवे- अन्तरद्वीपविशेषः। स्था० २२६। गोहिलए- गोष्ठीकः। आव० ९२। विपा० ५५) गोकर्णनामा-न्तरदवीपः। प्रज्ञा० ५० गोट्ठी- गोष्ठी-जनसमुदायः। ज्ञाता० २०६। आव० ८२२, गोकर्ण-मृगभेदः। श्रृङ्गवर्णादिविशेषः। जम्बू० १२४। ८२४। उत्त० ११२। महत्तरादिपुरुषपञ्चकपरिगृहीता। गोकलिंज- डल्ला। जम्बू० ५८१ गोकलिजं नाम यत्र बृह. २०० । गोभक्तं प्रक्षिप्यते। राज० १४१। गवां चरणार्थं गोडंडेणालिया- | निशी० ४६ आ। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [124] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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