Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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[Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
[Type text] निरन्वयक्षणिकवस्तु-वादविघातार्थम्। दशवै. १३० चक्रवर्तिवासुदेव-बलदेवप्रभृतयः। आचा० ३३३। क्षत्रियःखणयन्नो-क्षण एव क्षणकः-अवसरो
सामान्य राजकु-लीनाः। राय०१२११ क्षत्रियाःभिक्षार्थमुपसर्पणादि-कस्तं जानातीति। आचा० १३२॥ शेषप्रकृतितया विकल्पि-ताः। जम्बू. १४५। क्षत्रियाःखणलव-कालोपलक्षणः क्षणलवादिषु
आरक्षिकाः। निशी. २७७ अ। संवेगभावनाध्यानासेव-नतश्च निर्वतितवान्। ज्ञाता० खत्थो-विलक्षः। दशवै०५५। १२१
खदिरचञ्चुः- वजुलः। प्रश्न० १० खणसंखडी-क्षणसङ्खडी। दशवै० ८९।
खदिरसारए-खदिरसारः। प्रज्ञा० ३६० खणाति-क्षणाः सङ्ख्यातानप्राणलक्षणः। स्था०८७) खद्धं-त्वरितम्। आचा० ३३७। बृहच्छब्देन खरकर्कशनिखणिए-क्षणिकः निर्व्याघातः। ओघ. २००९
ष्ठुरम्। आव०७२६। बहुः। उत्त० १४६। महाप्रमाणम्। खणित्तु-खनित्वा-समाकृष्य। आचा०४१७)
बृह. ६४ आ। प्रचुरम्। आव० ३९३, ५६। बृह० २३५अ। खणीकरेंति-प्रक्षालयन्ती। आव० २१५
बृह. २४८ आ। ओघ०६८, १२७ पिण्ड० ७०, १३९। आव० खण्णा- (देशी) सर्वात्मना लुषिता। व्यव० १४० आ। ७२६। प्रश्न. १२८ आचा० ३३९। प्रचरम्। व्यव० १८०। खतं-स्वदेहोद्भवमेव क्षतम्। अनुयो० २१२
प्रभूतम्। ओघ० ४८५ प्रश्न० १४१। आचा० ३५३। शीघ्रम्। खतए- रावप्रलापाते कृष्णपुद्गलविशेषः। राहोः आचा० ३५२। बृहता बृहता कवलेन भक्षणम्। आव०७२६। चतुर्थनाथ। सूर्य २८७।
बृहत्प्रमाणं। ओघ० २१६, १२१। स्था० १३८। खतोवसम-क्षयोपशमः क्रियारूप एव। स्था० ३७८। खद्धपलालितो- प्रचुरपलालितः-सुखीधनाढ्यः। खत्तं-क्षत्रम्। उत्त. २०७। क्षत्रं-करीषविशेषः। पिण्ड०८ | उत्त०२२५) ओघ० १३०
खद्धवसभो- समर्थवृषभः। उत्त० ३०३ खत्तए-खातः-गर्तः इत्यर्थः। खातकः क्षेत्रस्येति गम्यते | खदादाणिअगामो-खद्धादानिकग्रामः-समृद्धग्रामः। ओघ. चौर इत्यर्थः। ज्ञाता० ७९। खत्तखणग-क्षात्रखानका-ये सन्धानवर्जितभित्तीः | खद्धादाणिओ- बहुदानीयः-श्रीमान्। आव० ६७९| काणयन्ति। ज्ञाता० २३९।
खद्धादाणिय-प्रचुरादानीयः-ऋद्धिमान् धनाढ्यः। आव. खत्तमेहा-खात्रमेघाः-करीषसमानरसजलोपेतमेघाः। ४३३॥ जम्बू० १६८ भग० ३०६||
खदादाणियगिहा-ईश्वरगृहा इत्यर्थः। निशी० ३५० अ। खत्ता-क्षता-क्षत्रीयस्त्रीरुद्राभ्यां जातः। आचा० ८। क्षत्राः- खनित्रम्-खननसाधनम्। शस्त्रविशेषः। आचा० ३६| क्षत्रियजातयो वर्णसङ्करोत्पन्ना वा।
खन्ना-मत्स्यकच्छपविशेषः। जीवा. ३२१| तत्कर्मनियुक्ताः। उत्त० ३६३॥
खपुसवग्गुरि-अद्धजंघातियाओ। निशी० १८ अ। खत्तिआ-क्षत्रियाः-श्रेष्ठ्यादयः। दशवै. १९११ क्षत्रिया। खपुसा- हिमाहिकण्टकादिरक्षायै पादपरिधानम्। ब्रह. आव. १२८ क्षणनानि क्षतानि तेभ्यस्त्रायत इति १०१ अ। घुटकच्छादकं चर्म। या घुण्टकं पिदधाति सा क्षत्रियः-राजा। उत्त०१८२। राजा। भग० १०१।
खपुसा। बृह. २२२ आ। राजकुलीनः। भग० ११५। इक्ष्वाकुवंशादिकः। सूत्र. २३६। | खमंत-क्षपयन, क्षपणम्। पिण्ड० १६६। कुलविशेषः। आव. १७९। राष्ट्रकूटादयः। आचा० ३२७। खम-क्षेम-सङ्गतत्वम्। क्षम-युक्तार्थः। बृह. १०७ अ। सामान्यराजकुलीनः। औप० ५८।।
क्षमा। भग०४६९। खत्तियकुंडग्गामं- क्षत्रियकुण्डग्राम-सिद्धार्थराजधानी। खमइ-क्रोधाभावात् क्षमते। भग०४९८1 आव० १७९| नगरविशेषः। भग० ४६१।
खमए-क्षपकः। आव० २६३। क्षपकः-विकृष्टतपस्वी। बृह. खत्तिया-सामान्यतो राजोपजीविनः। बृह. १५२ अ। २५९ आ। क्षत्रियाः-हैहेयाद्यन्वयजाः। उत्त०४१८५
खमओ-क्षपकः-श्रमणः। दशवै. ३७
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मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]

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