Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
[Type text]
ऊर्ध्वायता श्रेणिः। भग. १९६|
गहियो-विडम्बयितुं प्रारब्धः। बृह० ४७ आ। गहयुद्ध- ग्रहयुद्धं ग्रहयोरेकत्र नक्षत्रे सम
गहिल्लगवेस-ग्रहगृहीतवेषः भूतविण्ट इव श्रेणितयाऽवस्थानम्। भग. १९६|
विचित्रवेसवान्। दशवै० १९। गहरा-लोमपक्षीविशेषः। प्रज्ञा०४९।
गहो- ग्रहः। आव० ३९७। राहलक्षणः। ३९। गहरो-लोमपक्षीविशेषः। जीवा०४।
गां- वृषभम्। आचा० ३८४| गहसंघाडओ- ग्रहसङ्घाटकः-ग्रहयुग्मम्। जीवा० २८२।। गाइयव्वं- गातव्यम्। ओघ० १५७। गहसमं-प्रथमतो वंशतन्त्र्यादिभिर्यः स्वरो गृहीतस्तत्समं | गाउअं-द्वे धनुःसहस्रे गव्यूतम्। अनुयो० १५७। गीयमानं ग्रहसमम्। अनुयो० १३२ स्था० ३९४। गीतस्य | गाउयं-क्रोशद्वयं गव्यूतिः। ओघ० २३। गव्यूतं-द्विधनुः तृतीयो भेदः। निशी. १ ।
सहस्रप्रमाणम्। प्रज्ञा० ४८१ जीवा० ४०| धनुःसहस्रद्वयप्रगहसिंघाडग- ग्रहसिंघाटकं-ग्रहाणां
माणम् कोशः। भग० २७५। सिङ्घाटकफलाकारेणा-वस्थानम्। भग० १९६|
गागरं-स्त्रीपरिधानविशेषः। प्रज्ञा० ७०| गहसुसंपउत्त- यः प्रथमं वंशतन्त्र्यादिभिः स्वरो गागरा-मत्स्यविशेषः। प्रज्ञा०४४। गृहीतस्तन्मा-र्गानुसारि ग्रहसुसंप्रयुक्तम्। जीवा० १९५४ | गागरि- गर्गरी। अनुयो० १५२। प्रथमतो वंशत-न्त्र्यादिभिर्यः स्वरो गृहीतस्तत्समेन | गागरी- बृहद्वर्तुलघटिका। तन्दु० स्वरेण गीयमानं ग्रहसुसं-प्रयुक्त। जम्बू०४० गागलि- शालमहाशालभागिनेयः। उत्त० ३२४, ३२११ गहा- ग्रहाः-अङ्गारकादयो गृह्यन्ते। आव०५१९| ग्रहाः- गाङ्गलिः-तापसविशेषः। दशवै०५१। ज्योतिष्कभेदविशेषः। प्रज्ञा०६९। ग्रहाः-सूर्यादिकेत्वन्ता | गागली-पृष्टिचम्पायां यशोमतीपुत्रः। आव० २८६। नव, सोमस्याज्ञोयपातवचननिर्देशवर्तिनोदेवाः। भग. गाढ-निबिडम्। नन्दी०४६। अत्यर्थम्। ओघ० १२७, ३२४। १९५१
गाढं-वाढम्। भग० ३७ गहाय- गृहीत्वा-सम्प्रधार्यः। उत्त० २०६।
गाढीकय- गाढीकृतम्-आत्मप्रदेशैः सह गाढबद्धम्। भग० गहावसव्व- गहापसव्वं-ग्रहाणामपसव्यगमनं,
२५११ प्रतीपगमनम्। भग. १९६|
गाणंगणिए- गणादगणं षण्मासाभ्यन्तर एव गहिति- गमिष्यन्ति-ग्रहीष्यन्ति वा स्वीकारिष्यन्ति। सङ्क्रामतीति गाणङ्गणिकः। उत्त० ४३५) उत्त० १९४१
गाणंगणितो-णिक्कारणे गणातो अण्णं गणं संकमंतो गहिअ- गृहीतः-अनिक्षिप्तः। ओघ. ५८१
गाणंग-णिओ। निशी० ८०आ। गहिए- धनिकः। बृह० ४९ आ।
गाणंगणिया- गाणंगणिकता-गणे गणे प्रविशतीत्येवं गहिओ-गृहीतः-अवधारितः। आव० ४१५
प्रवादल-क्षणा। व्यव० ४९ अ। गहियं-पडिबद्धं । दशवै० १५१। गृहीतम्। प्रश्न ३०० गाणि- गानम्। आव०६७४। गहियगहणं- गृहीतग्रहणं-गृहीतं ग्रहणं-ग्रहणकं येन सः। | गातब्भंग- गात्राभ्यङ्गः-तैलादिनाऽङ्गम्रक्षणम्। स्था० प्रश्न. ३०
२४७ गहियट्ठा-परस्मात्। भग. ५४२ अर्थावधारणात्। गातुच्छोलणाई- गात्रोत्क्षालनं-अङ्गधावनम्। स्था० २४७। गृहीतार्थम्। भग. १३५
गात्राणि- ईषादीनि। जम्बू० ५५ गहियवलंजो-सेज्जातरो खेत्तस्य अंतोबहिं वा
गाधेन-उद्वेधेन। स्था० ४८० गहियवलंजो। निशी. १५८ अ।
गामंतरं- ग्रामादन्यो ग्रामः ग्रामान्तरम्। आव. १४। गहियाउपहरणे- गृहीतायुधप्रहरणः-गृहीतानि आयुधानि । | गामंतिय- ग्रामस्यान्तेः समीपे वसतीति ग्रामान्तिकः। श-स्त्राणि प्रहरणाय-परेषां प्रहारकरणाय येन सः। भग. सूत्र० ३१५ ३१८१
| गाम- ग्रसति बुध्यादीन् गुणानिति गम्यो वाऽष्टादशानां
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]

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