Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 110
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] गलकवोला- गलकपोलौ। जीवा. २७५ गवाकृतिर्वर्तुल-कण्ठः। प्रश्न० ७। गलकुक्कुटी- गल एव कुक्कुटी। पिण्ड० १७३। द्विखुरचतुष्पदविशेषः। प्रज्ञा०४५। गलगहिओ- गलगृहीतः। आव० ३४६) गवलं-महिषीश्रृङ्गम्। आचा० २९। उत्त०६५२। ज्ञाता० गलच्छल्लं- गलग्रहणम्। प्रश्न०५६ १०११ माहिषं श्रृङ्गम्। जीवा. १६४१ प्रज्ञा. ९११ माहिषं गलत्थल्ला-हस्तेन गलग्रहणरूपा। ज्ञाता० १६८१ श्रुङ्ग रितनत्वग्भागापसारणे द्दष्टव्यम्। प्रज्ञा० ३६० गलयंत्र-यन्त्रविशेषः। दशवै. २७०।। श्रृङ्गम्। प्रश्न. २१ गललाय- गललातानि कण्ठे न्यस्तानि वरभूषणानि। | गवलगुलिया- तस्यैव माहिषश्रृङ्गस्य जम्बू. २६५ निबिडतरसारनिर्वर्तिना गुटिका गवलगुटिका। जम्बू. गलवृन्दं- शरीरान्तर्वर्धमानावयवविशेषः। प्रज्ञा० ४७३। ३२गवलगुलिका-महिषश्रृ-ङ्गगोलिका। ज्ञाता० २६। गलि-अविनीतः। उत्त०४८ मरालः। आव०७९७१ गवलं-महिष्यश्रृङ्गं गुलिका-नीली गवलस्य वा गुलिका गलिगर्दहा- गलिगर्दभाः-दुःशिष्याः। उत्त० ५५४१ गवलगुलिका। ज्ञाता० १०११ गलिच्चा- गलसत्कानि आभरणानि। पिण्ड० १२४। | गवलसामला- गवलं-महिषश्रुङ्ग तद्वत् श्यामलः। गलियलंबणा- गलितलम्बना-आलम्बनाम् भ्रष्टा, श्यामा। ज्ञाता० २३१। लम्ब्यन्ते इति लम्बनाः-नङ्गरास्ते गलिता यस्यां सा। | गवलेइ-माहिषं श्रृङ्गं तदपि चापसारितोपरितनत्वग्भागं ज्ञाता० १५८१ ग्राह्यम्। जम्बू. ३२॥ गली- गलिः दुष्टाश्चः। उत्त०६२। गलित्येव केवलं न तु | गवाणी- सामान्येन गवादनी। आचा० ४११। वहति-गच्छति वेति गलिः-दुष्टाश्वो दुष्टगोणो वा। गवालीयं- गवालीकं-गोविषयमनृतम्। आव० ८२० उत्त०४९। गवासं- गावश्चाश्वाश्च गवावं, गावो वाहदोहोपलक्षिताः गलेरवं-यो गलेनात्यन्तं रटति। आव०६६१। अश्वाः -तुरगाः। उत्त. १२९। गल्ल-कपिः। उपा०२१| गंवेल- गौः। अनुयो० १२९। गल्लोदए- गल्लोदकाः। दशवै. १०४। गवेलग-गवेलकः-उरभ्रः। औप० १२। ज्ञाता०२। गवं- मृगादिपशुः। सूत्र०७२। गवेलगा- गवेलकाः-ऊरणकाः। अनुयो० १२९। स्था० ३९५) गवए- गवाकृतिराटव्यो जीवविशेषः। बृह. १०६अ। गवेलकाः ऊरभ्राः। भग० १३५) गावश्चएलकाश्च गवओ-गोणागिती गवओ। निशी० ४७ आ। ऊरणका गवेलकाः। स्था०२९५४ गवक्खए- गवाक्षः। आव०६७६| गवेषणा- व्यतिरेकधर्मालोचनम्। नन्दी० १८७) गवख्खजाल- गवाक्षजालं-गवाक्षाकृतिरत्नविशेषो गवेसओ- गवेषकः शोधकः। आव०४१८१ गवेषकः। आव. दामसमूहः। जीवा.१८१, २०५, ३६१। जम्ब० ५०० ३१४१ गवक्खसंठिओ- गवाक्षसंस्थितः-वातायनसंस्थितः। गवेसण-व्यतिरेकतो गवेषणम्। भग०६६३। गवेषणंजीवा. २७९ व्यतिरे-कधभैरन्वेषणम्। औप. ९५ गवक्खो- गवाक्षः-वातायनः। जीवा० २७९। प्रश्न. १३८१ व्यतिरेकधर्मालोचनम्। आव० ९९। अनुपलब्भ्यमानस्य नन्दी०७३। पदार्थस्य सर्वतः परिभावनम्। पिण्ड० २९। गवच्छ-आच्छादनम्। जम्बू०५८ गवेष्यतेऽनेनेति गवेषणं तत ऊध्वं सद्भूता - गवच्छिता- गवच्छं-आच्छादनं गवच्छा सजाता र्थविशेषाभिमुखमेव एष्विति गवच्छिकाः(ताः)। राज०७१। व्यतिरेकधर्मत्यागोड नवयधरमाधयासालोनम्। नन्दी. गवत्थिया- गवस्था-आच्छादनम्। जीवा. २१४| १७६। गवेषणं-व्यतिरेकधर्मालोचनम्। भग० ४३३। इह गवय-वनगवः। जम्ब० १२४। आटव्यः पशविशेषः। शरीरकण्डूयनादयः पुरुषधर्माः प्रायो न घटन्त इति प्रश्न० ३८१ गवयः द्विखुरश्चतुष्पदः। जीवा० ३८१ व्यतिरेकधर्मालोचनरूपम्। ज्ञाता०१२ मनि दीपरत्नसागरजी रचित [110] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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