Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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कुंकण- चतुरिन्द्रियजीवविशेषः। उत्त० ६१६। कोकनदः। | कुंडधारपडिमाओ-कुण्डधारप्रतिमे-आज्ञाधारप्रतिमे। प्रज्ञा० ३७
जम्बू०८२ कुंकुम- केशरः। अनुयो. १५४ आव० ८२३। जीवा. १९११ कुंडधारी-तीर्यक्ज़म्भकदेवविशेषः। आचा० ४२२ कुकुम, जात्यघृसृणम्। जम्बू० २१३। कुङ्कुम- कुंडपुरं-कुण्डपुरं-वर्द्धमानजन्मभूमिः। आव० १६०| कश्मीरजम्। प्रश्न. १६२| निशी० २७६ आ, १३९ अ। प्रव्रज्यास्थानम्। आव० ३१२ सुदर्शनाया कंकमकेसरं- पद्मकम्। दशवै. २०६।
वास्तव्यस्थानम्। उत्त० १५३। कुंकुमपुड-गन्धद्रव्यः। ज्ञाता० २३२।
कुंडमोए-कुण्डमोदं, हस्तिपादाकारं मृन्मयं पात्रम्। कुंच-क्रौञ्च-पक्षिविशेषः। उत्त०४०७। सम० १५८१ प्रश्न. दशवै० २०३
कुंडरिया-साधारणबादरवनस्पतिकायविशेषः। प्रज्ञा० ३४| कंचवीरगो-सगडपक्खिसारित्थं जलजाणं कज्जति। कुंडल-कुण्डलं-कर्णाभरणविशेषरूपः। प्रज्ञा० ८८1 निशी. १७ ।
कर्णाभ-रणविशेषः। औप. ५०| भूषणविधिविशेषः। कंचिक-तापसविशेषः। व्यव० ६४ आ।
जीवा० २६८। अरुणवरावभाससमुद्रानन्तरं द्वीपः, कंचिका- | नन्दी० १६५ तालोदघाटिनी। पिण्ड० १०६। तदनन्तरं समुद्रोऽपि। प्रज्ञा० ३०७। कुण्डलंकुंचितो- तावसविशेसो। निशी. १०१ आ।
कर्णाभरणविशेषः। भग० १३२॥ कुंचिय-कुञ्चितः-कुण्डलीभूतः। भग० १०| वक्रः। प्रश्न | कुंडलजुअलं-कुण्डलयुगलं-कर्णाभरणम्। आव० १८० ८२
कुंडलभद्दो- कुण्डलभद्रः-कुण्डले द्वीपे पूर्वार्द्धाधिपतिर्देवः। कुंची-कुडिलो, मायावी। व्यव० ६३ आ।
जीवा० ३६८१ कुंजरसेणा-कुञ्जरसेना-ब्रह्मदत्तस्याष्टाग्रमहिषीणां कुंडलमहाभद्दो- कुण्डलमहाभद्रः-कुण्डले मध्ये पञ्चमी। उत्त० ३७९।
द्वीपेड पराद्धघातिर्देवः। जीवा० ३६८। कुंजरावत्त- वज्रस्वामिपूजास्थानम्। मरण | कुंडलवर- द्वीपविशेषः। अनुयो० ९०| कुण्डलवरे समुद्रे कुंजरो-कौजीर्यतीति कुञ्जरः कुजे-वनगहने रमति- पूर्वार्द्धा-धपितिर्देवः। जीवा० ३६८ कुण्डलसमुद्रानन्तरं रतिमा-बध्नातीति कुञ्जरः। जीवा० १२२
द्वीपः, तदनन्तरं समुद्रोऽपि। प्रज्ञा० ३०७। कुंट-हीनहस्तः। निशी० ४३आ। विकृतहस्तः। प्रश्न. कुण्डलवराख्ये द्वीपे प्राकारकुण्डलाकृतिः-कुण्डलवरः। २७। अवयवविशेषः। आचा० ३८९।
स्था० १६६, १६७। कुण्डलवरः कुण्डलसमुद्रपरिक्षेपी कुंटत्तं- कुण्टत्वं पाणिवक्रत्वादिकम्। आचा० १२०| द्वीपविशेषः। कुण्डलवर-द्वीपपरिक्षेपी समुद्रश्च। कुंटितो-कुण्टितः। आव० ३९६)
जीवा० ३६८1 कुंडं- पुढविमयं। दशवै. ९९। गङ्गाकुण्डादि। नन्दी | कुंडलवरभद्दो- कुण्डलवरभद्रः कुण्डलवरद्वीपे
२२८। कुलियं। निशी. २४ आ। स्थलविशेषः। भग० १४२॥ | पूर्वार्द्धाधिपति-देवः। जीवा० ३६८१ कुंडग-सण्हतंडुलकणियाओ कुकुसा य कुंडगा। निशी. | कुंडलवरमहाभद्दो- कुण्डलवरमहभद्रः कुण्डलवरे
३२ अ। कुडङ्गम्-जालिः। आव० ६७०। पानीयभाजनम्। | द्वीपेऽपरार्द्ध-धिपतिर्देव। जीवा० ३६८१ निशी० ६६ आ। कुण्डकः-कणक्षोदनोत्पन्नकुक्कुसः। | कुंडलवरमहावर-कुण्डलवरे समुद्रेऽपरार्द्धाधिपतिर्देवः। उत्त०४५
जीवा० ३६८१ कुंडग्गाम-कुण्डग्रामः, वर्धमानस्वामिविहारभूमिः। आव० | कुंडलवरावभास-कुण्डलवरसमुद्रानन्तरं द्वीपः, २१९। ब्राह्मणकुण्डग्रामविषयोऽष्टमशते
तदनन्तरं समुद्रोऽपि। प्रज्ञा० ३०७) त्रयस्त्रिंशत्तमोद्देशकः। भग० ४२५
कुंडलवरावभासभद्द-कुण्डलवरावभासे द्वीपे वैश्यायनतापसस्थानम्। भग०६६५।
पूर्वार्द्धाधिपतिर्देवः जीवा० ३६८। कुण्डलवरसमुद्रपरिक्षेपी कुंडदोहणी-कुण्डदोहनी। ओघ० ९७।
द्वीपः, कुण्डलवरावभासद्वीपतत्परिक्षेपी समुद्रश्च।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]

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