Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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देवनाम। सम० १५४।
चिलातदेशनिवासी म्लेच्छविशेषः। प्रश्न. १४। केसव-केशवः-वासुदेवः। आ० १६६। ज्ञाता० २१३। जीवा० | कोंचवरो- क्रौञ्चवरः, अपान्तरालद्वीपः। जीवा० ३६८१ १२९। वसुदेवलघुसुतः वासुदेवः। उत्त० ३८९। अपरविदेहे । | कोंचवीरग-पेटासदृशं जलयानम्। बृह. ३२ अ। जीर्णश्रेष्ठिपुत्रः, श्रेयांसजीवः। ऋषभपूर्वभववैद्य-पुत्रस्य | कोंचस्सरा- क्रौञ्चस्वरा-विदयुत्कुमाराणां घण्टा। जम्बू० मित्रम्। आव० १४६।
४०७। क्रोञ्चस्वरः, क्रोञ्चस्येव स्वरो यस्य सः। जीवा. केसवाणिज्ज- केशवाणिज्यम्। दासीर्गहीत्वाऽन्यत्र २०७। विक्रीणाति। आव० ८२९।
कोंचा-लोमपक्षिविशेषः। प्रज्ञा०४९। केसहत्थ- केशहस्तो-धम्मिल्लः भग० ४६८५
कोंचावली-क्रोञ्चावलिः। जीवा. १९१। केसा-केशाः-शिरोजाः। प्रश्न०६०
कोंचासणं- क्रौञ्चासनं, यस्यासनस्याधोभागे क्रोञ्चो केसि-कीदृशी स्त्री। अनुयो० १३॥
व्यवस्थितः सः। जीवा. २००९ केसिआ- केशा विदयन्ते यस्याः सा केशिका। सूत्र. ११६। |
| कोंची-द्रविडदेशे नगरी। बृह. २२७ अ। केसिगोयमिज्जं-केशिगौतमीयं, उत्तराध्ययनेष कोटलवेंटलं-कार्मणवशीकरणादि। आव. १९३। त्रयोविंशति-तममध्ययनम्। उत्त. ९। केशिगौतमीयं- | कोंडग-क्षत्रियविशेषः। निशी. १२। उत्तराध्ययनेषु त्रयोविंशतितममध्ययनम्। उत्त० ४९७ | कोंडलमेंढ-कुण्डलमेंढ-भृगुकच्छे वाणव्यन्तरविशेषयात्राकेसिसामि-केशिस्वामी। भग० १३८ केशिनामा
स्थानम्। बृह. १३६ अ। भृगुकच्छे वाणव्यन्तरविशेषः। आचार्यः। भग० ५४८१
बृह. १३६ । केसी-पार्श्वपत्यः श्रमणः। राज०११ निर०१, ४० कोंडिण्णो-कौण्डिन्य-तापसविशेषः। आव. २८७ केशी-विगतिदवारे उदायनस्य भागिनेयः। आव. ५७३। कॉडियायण- चैत्यविशेषः। भग०६७५ केश्यभिधानः। भग० ६१८
कॉतियं- कौन्तिकम्-मधुविशेषः। आव० ८५४। महुस्स केसुअ-किंशुकं-पलाशपुष्पम्। जम्बू० २१२।
पढमो भेओ। निशी. १९६ आ। कैदारकः- मङ्खः। पिण्ड० ९६|
कॉति- पाण्डुराज्ञो राजी। ज्ञाता०२१३। कोंकण- देशविशेषः। आचा०५१ व्यव० १६८ अ। निशी. | कोअगडं- पार्श्वजिनस्य प्रथमपारणकस्थानम्। आव. ६३ | निशी. ७९आ।
१४६| कोंकणकसाधुः-अपध्यानाचरिते साधः। आव० ८३० कोआसिअ-कोआसिते-विकसिते। जम्बू. ११३ कोंकणग-म्लेच्छविशेषः। प्रश्न. १४ प्रज्ञा० ५५ कोआसिय- पद्मवदविकसितम्। औप०१७ कोकणकः-देशविशेषः। आव. ९३।
कोइल- कोकिल-अन्यपुष्टः। उत्त०६५३। प्राणातिपातदोषविषये उदाहरणम्। आव० ८१८ कोइलच्छद-कोकिलच्छदः-तैलकण्टकः। उत्त०६५३। कोंकणगखमणओ- कोकणकक्षपकः-मनोदण्डे कोइलच्छदकुसुम- कोकिलच्छदकुसुम-कोकिलच्छदःउदाहरणम्। आव० ५७७
तैलकण्टकः, तस्य कुस्मम् । प्रज्ञा० ३६०| कोंकणगदेसो-कोकणदेशः-कर्मसिद्धोदाहरणे
कोइला- लोमपक्षिविशेषः। प्रज्ञा०४९। कोकिला-परभृत्। देशविशेषः। आव० ४०८१
प्रश्न. ३७ कोंकणगसावगो-कोकणकश्रावकः-गुणोदाहरणे श्राद्धः। | कोइल्लं- कोल्लेरं-नित्यवासविषये आव० ८२११
सङ्गमस्थविरदृष्टान्ते नगरम्। आव० ५३६। कोंकारव-कोकारवः, पुरद्वारस्योद्
| कोउअ- कौतुकं-रक्षा। जम्बू. १८९। अलङ्कारविशेषः। घाट्यमानस्याव्यक्तोऽयं शब्दः। दशवै० ४८१
आव० १८२। मषीपुण्ड्रादि। उपा० ४४। कोंच-म्लेच्छविशेषः। प्रज्ञा० ५५ क्रौञ्चः-पक्षिविशेषः। । कोउगं- सौभाग्यादिनिमित्तं परेषां स्नपनादि। औप० आव० ३६९। क्रोञ्चः, लोमपक्षिविशेषः। जीवा०४१। १०६। सौभाग्याद्यर्थं स्नपनम्। प्रज्ञा० ४०६।
मनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]

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