Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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प्ररूक्षनयनदन्तच्छदस्फ़र-णादिचेष्टैव
प्रश्न.१४४॥ संज्ञायतेऽनययेति क्रोधसंज्ञा० भग० ३१४।
क्रोधादिपिण्डः- क्रोधमानमायालोभैरवाप्तः क्रोधवेदनीयोदयात्तदावेशगर्भा
क्रोधादिपिण्डः। आचा० ३५११ पुरुषमुखवदनदन्तच्छदस्फू-रणचेष्टा क्रोधसंज्ञा। प्रज्ञा. | क्रोधादिमानं-क्रोधादीनां मानम्। आचा. १६४| રરરા
क्रौंचारिः- कार्तिकेयः। आचा. २६। कोहा- क्रोधा-क्रोधानुगता। निशी० ३१ आ।
क्रौष्ठिकी- श्रीकृष्णस्य नैमित्तिकः। उत्त०४९० कोहंडियाकुसुमेइ-कुष्माण्डिकाकुसुमं-पुंस्फलीपुष्पं। क्वणितं- शब्दितम्। आव०६४६| जम्बू. ३४
क्वणिता- काचिद्वीणा। जीवा० २६६। कोहेतुः- को हेतुः- का उपपत्तिः । सूर्य. २२। किं कारणम्। क्वथितं- प्रधानम्। जीवा. २६८१ सूर्य. १३
क्वथितोदकं-उष्णोदकम। दशवै. २२८। कौटलं-अर्थशास्त्रम। ज्योतिषं निमित्तं वा। ओघ. १४९। | | क्वार्थ- फाणितम्। प्रज्ञा० ३६४। कौटिल्यं-मायी। दशवै० २५४।
क्षणक्षयिभावप्ररूपकः-सामच्छेदः। आव० ३११| कौतुकं- थुथुकरणं, बन्धकडकादिबन्धनं, एतत् सर्वमपि | क्षणमात्रं- पलमात्रम्। नन्दी. १५५। कौतुकमुच्यते। बृह. २१५ अ।
क्षणीभूतं-स्तिमितम्। ओघ. १८४ कौमोदकी- वासुदेवस्य गदा। उत्त० ३५०। गदाविशेषः। क्षपकर्षि-भिक्षुविशेषः। उत्त० ४१८॥ प्रश्न० ७७। गदा, लकुटविशेषः। सम० १५७।
क्षपणं-अनारोपणम्, प्रस्थे कौलिकः- कोकिलजातीयः पुरुषविशेषः। नन्दी० १५५ चतुःसेतिकाऽतिरिक्तधान्यस्येव झाटनमित्यर्थः। स्था० कौलिकी-कोकिलजातीया-भ्रामरम्, उत्पातिकीबुद्धे- ३२६। ईष्टान्तः। नन्दी० १५५
क्षपणोपसम्पत्- चारित्रनिमित्तं क्वचित्क्षपणार्थम्। कौशाम्बकानने- वनविशेषः। स्था०४३३
आव. २७१। कौशेयकानि-वस्त्राविशेषभूतानि। सम० १५८।
क्षयनिष्पन्न- तत्फलरूपो विचित्र आत्मपरिणामः, कौसंभ-रागविशेषः। रञ्जनविशेषः। जम्बू. १८८५ केवलज्ञान-दर्शनचारित्रादिः। स्था० ३७८१ क्खायं-ख्यातं, कथितं, प्रसिद्धम्। प्रज्ञा०६८।
क्षयोपशमं-अर्द्धविध्यातानलोदघट्टनसमतां नीतम्। आव. क्रमभङ्गः- यथैको जीव एक एवाजीवेत्यादि। आव०५९६। । ७९ क्रमभङ्गकाः- भङ्गस्य द्वितीयभेदः। स्था० ४७८। क्षान्तः-क्षामितसमस्तप्राणिगणः। आचा. २९१। क्रयाणकः- द्रव्यसमूहः। नन्दी० १५०
क्षात्रखानकः-सन्धिन्छेदकः। प्रश्न० ४६। क्राकचव्यवहारः- क्रकचेन काष्ठस्य तद्विषयं सङ्ख्यानं | क्षारोदका-आमलकोदकाः। पिण्ड० ६५१
कल्प एव यत्पाट्यां क्राकचव्यवहारः। स्था० ४९७। क्षाल- निर्द्धमनः। स्था० २९४। क्रियानयः-नयविशेषः। दशवै.८०
क्षीरकाकोली-साधारणवनस्पतिविशेषः। आचा. ५७। क्रियाविशालं- कायिक्यादिक्रियाविशालं
क्षोरबिडीलिका-साधारणवनस्पतिकायिकभेदः। जीवा. संयमक्रियाविशालं च। नन्दी० २४१।
રછ| क्रियासिद्धिः- इहैव मोक्षावाप्तिलक्षणा। आचा० ४१९। क्षीररसा-वापीनाम। जम्बू० ३७१। क्रीडारथः-क्रीडार्थ रथः रथस्य प्रथमो भेदः। जीवा. १८९| | क्षीरवरः-दवीपविशेषः। अनयो०९० क्रीत-साध्वकल्प्य मशनादि। दशवै.२०३। प्रश्न. १४४।। | क्षीराश्रवत्वं- ऋद्धिविशेषः। स्था० ३३२१ क्रूराणि- क्रूराणि, निर्दयानि निरनक्रोशानि। निशी. १९९| | क्षीराश्रवः-क्षीरवन्मधवक्ता। आचा०६८। क्रोधकारणः- गर्वः। आचा० १६४।
क्षीरिका-साधारणवनस्पतिकायिकभेदः जीवा० २७। क्रोधनत्वं- अत्यन्तक्रोधनत्वम्। नवममसमाधिस्थानम्। | क्षीरोदः- क्षीररसास्वादः समुद्रः। अनुयो० ९०|
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]

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