Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 56
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] 1981 अधमः उत्त० १८३ किल्बिषिकं कर्म। दशवै० १८९। | कीयकडं- क्रीतेन-क्रयेण कृतं-साधुदानाय कृतं किल्बिषं पापम्। प्रज्ञा० ४०५१ क्रीतकृतम्। प्रश्न. ११४१ किव्विसत्तं-किल्बिषत्वं-चाण्डालप्रायदेवविशेषत्वम्। कीयगड-क्रयणं क्रीतं तेन कृतं-निष्पादितं क्रीतकृतं, प्रश्न.११ क्रीत-मित्यिर्थः। पिण्ड० ९५भग० २३१। क्रीतकृतम्। किस-कृशं स्तोकमपि तृणत्षादिकमपीत्यर्थः। कसनं- आचा० ३२९। कयेण-कडं कीयकडं, कत्तिएण वा कडंकसः परिग्रहग्रहणबुद्ध्या जीवस्य गमनपरिणामः। कीयगडं। निशी० १०३आ। सूत्र० १३ कीयतिय-क्रीतत्रितयं-क्रयणक्रापणानुमतिरूपम्। दशवै. किसलय-किशलयः-अवस्थाविशेषोपेतः। पल्लवविशेषः। । १६८१ जीवा० १८८ किशलयः-अवस्थाविशेषोपेतः कीरंत-क्रियमाणः। ज्ञाता० १७३। पल्लवविशेषः। जम्बू. २९। अतिकोमलः। जम्बू०५३। कीर-शकः। जीवा. १८८ अभिनवपत्रम्। उत्त० ३३४१ कीत्ति-नीलवर्षधरपर्वते पञ्चमकूटः। स्था०७२ किसि-कृषि:-क्षेत्रकर्षणकर्म। प्रश्न. ९७१ कीलं-कीलकम्। दशवै. १७६। कण्ठः । सूत्र. १३०| किसिपरासरो-कृषिप्रधानः पारासरः कृषिपारासरः। उत्त० | कीलंति-यथासुखमितस्ततो गमनविनोदेन ११८ शरीरेण कृशस्तेन पारासरः कृशपारासरः। उत्त.. गीतनृत्यादिविनो-देन वाऽवतिष्ठन्ते। जम्बू०४६। १९९| कामक्रीडां कुर्वन्ति। भग० ६१८१ किसी- कृषिः-कृषिकर्मोपजीवी। जीवा. २७९। कीलइ-क्रीडति। आव० १९२॥ किसीए- कृषीकरणम्। आचा० ३२। कीलओ-कर्पूराकारम्। बृह. २४५ अ। किह-केन प्रकारेण। भग. ११६| कीलगसहस्सं-कीलकसहस्रं महत्कीलम्। जीवा० १८९। कीअ-कीचकः वंशः। दशवै० २४३।। कीलसंस्थाने-कीलवद्दीर्घमुच्चं गतं तस्मिन्। ओघ. २११। कीअगडं-क्रीतकृतं-द्रव्यभावक्रयक्रीतभेदम्। दशवै. १७४१ | कीलावणधाती-चउत्थी धाई। निशी० ९३आ। कीएइ-भोजनदोषः। भग० ४६६। क्रीडनकारिणी। ज्ञाता०४१। कीकशं-अस्थि। प्रश्न. १११ कीलिआइ-क्रीडितं-स्त्रीभिःसह तदन्य क्रीडेति। सम० कीट:- कचवरनिश्रितो जीवविशेषः। आचा० ५५ १६ कीटजं-यत्तथाविधकीटेभ्यो लालात्मकं प्रभवति यथा कीलिका-यत्रास्थीनि कीलिकामात्रबद्धानि तत्। जीवा १५ पटसूत्रम्। उत्त० ५७१। ४२ अस्थित्रयस्यापि भेदकमस्थि। राज०५७। कीड-कीटः कृमिः। दशर्वे. १४२। घुणादि। बृह० १५२॥ यत्रास्थीनि कीलिकमात्रबद्धान्येव तत्। प्रज्ञा० ४७२। चतुरिन्द्रियजीवभेदः। प्रज्ञा० ४२। जीवा० ३२। उत्त. कीलिगा-अस्थित्रयस्यापि भेदकमस्थि। जम्बू०१५ कीलिय-क्रीडितं दयूतादिक्रीडा। प्रश्न. १४०| कीलिका कीडति-क्रीडति-यथासुखमितस्ततो गमनविनोदेन लोहरेखा। दशवै. ९१। गीतन-त्यादिविनोदेन वा तिष्ठति। जीवा. २०११ कीव-कीवः पक्षिविशेषः। प्रश्न. २३। मन्दसंहननम्। कीडयं-वडयपट्टोति। निशी. १२६ अ। भग० ४७१। नामविशेषः। ज्ञाता० २०८। मैथनाभिप्राये कीडाए-क्रीडायै-लंघनवलग्नानस्फोटनक्रीडानां योग्यः। यस्याङ्गा-दानं विकारं भजति बीजबिन्दूश्च परिगलति आचा० १०६| स क्लीबः। बृह. ९९ आ। क्लीबः-असमर्थः। स्था० कीते-द्रव्येण भावेन वा क्रीतं-स्वीकृतं यत्तत्क्रीतमिति। १६४। क्लीबः-निःसत्त्वः। उत्त०४५७। स्था०४६० कीस-कस्मात्। उत्त. १३५ कीसत्ता-किंस्वता, किंस्वकीय-शबले षष्ठो दोषः। सम० ३९। क्रीतं-मल्येन परिग- | भावता, कीदृशता वा कः प्रकारः-किंस्वरूपतेत्यर्थः। हीतम्, अष्टमदोषः। भग. २२ किम्। व्यव० ६७ अ। ६९६ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [56] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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