Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 61
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] कुडओ- चतुःसेतिकः कुडवः। ज्ञाता० ११९। | भित्तिः। उत्त० ५३०| खटिकादिरचितम्। उत्त० ४२५॥ कुडगं-तुसमुहीकणिया कुक्कससीमा कुडगं भण्णति। कुड्मलं-मुकुलं, कलिका। जीवा० १८२॥ निशी. १९६अ। कुड्यैकदेशः- भित्तिमूलम्। दशवै. १७८। कुडगफाणिए- कुटजफाणितं-कुटजक्वाथम्। प्रज्ञा० ३६४। | कुढिय- हृतगवेषकः। उत्त० ११०| ग्रामाधिपः, आरक्षकः। कुडगो-कुटः-कुम्भः। आव० ३१०| आव० २७२। कुडभी- लघुपताका। जीवा० २२९। जम्बू० ४०३, आव० | कुढिया-कुविया। निशी० ७७ अ। ७१९। जम्बू. ३२५। पताका। उत्त० ३०३। कुढो- चौरहतागवेषकः। बृह. २२अ। दशवै० ४४। निशी. कुडमुहे- | निशी. ३५७ आ। ६आ। कुडय-कुटजपुष्पाणि। जम्बू० २१२१ कुणक्के- कुहणविशेषः। प्रज्ञा० ३३। कुडयज्जुणणीव-कुटजार्जुननीपा-वृक्षविशेषास्तत् | कुणपनहो- कुणपे-मांसे सूक्ष्मो नखो नखावयवः स पुष्पाणि कुटजार्जुननीपानि। ज्ञाता० १६१| कुणपन-खावयवः। व्यव० २५५ आ। जनपदविशेषः। कुडवं-मानविशेषः। आव० ८२३। निशी० ८०आ। कुडा-कुण्डानि-गङ्गाकुण्डानि। कुणाल-अशोकश्रीपुत्रः। बृह. १५३ आ। कुणालः, कुडागाराणि-कूटागारान्-पर्वतोपरिगुहाणि। आचा० ३८२, भावप्रणिधावुदाहरणे दृष्टान्तः। आव०७१३। असोगस्स नन्दी० २२८१ पुत्तोः । बृह० ४७ । कुडाविमा- वनस्पतिविशेषः। भग०८०२२ कुणालकुमार-पाडलिपुत्ते असोगसिरिराया तस्य पुत्तो कुडाहच्च-कूटाघातम्। राज० १३४| कुणालो। निशी० ४४ आ। कुडि-बृहती। आव० २६२। कटी। आव० ५२० कुणाला-जङ्घार्धमानैरावतीकण्ठे नदी। बृह. १६१ आ। कुडिउ- बद्धाङ्गः। निशी० १६१ आ। एरवती नदी कुणाला जणपदे, जनपदविशेषः। निशी. कुडियंठो-कण्डिकाण्ठः। आव० २७३। ८० जनपदः। राज०११६। जनपदविशेषः। प्रज्ञा० ५५) कुडिय- हृतगवेषकः। उत्त० १०९। ज्ञाता० १४०। कुणाला यत्र श्रावस्तीनगरी ज्ञाता० १२५१ कुडिलगइ-कुटिलगतिः-वक्रगतिः। आचा० ४२। कुणि- गर्भाधानदोषात् हस्वैकपादो न्यूनैकपाणिर्वा कृणिः कुडिलो-कुटिलः वक्रः प्रश्न० ३० कुण्ट इति। प्रश्न० १६१। पाणिविकलः। बृह. ११९ अ कुडिव्वय-कुटिव्रतः-परिव्राजकविशेषः। औप० ९१। कुणिए-कणिक।। राज०१४३। कुडी-कुटी-शरीरम्। भग० २९२। गृहः। आव० ४८४। कुणिओ-कुणिकः-सेवकविशेषः। प्रश्न १५ कुडीरग-कुटीरकं, तृणादिनिर्मितं लघुगृहम्। दशवै० १६६। कुणिमं- मांसम्। तन्दु० । उपा० २९। रुधिरम्। आव० कुडीरी-ओरजम्। तन्दु०। ५६१। कुणपः-शवः। अनुयो० १३८१ प्रश्न० ५२। मांसम्। कुडुंबजागरिय-कुटुम्बचिन्तायं जागरणं-निद्राक्षयः। पिण्ड०७१। जीवा. १०७। शबस्तद्रसोऽपि वसादिः कुटुम्बजागरिका। ज्ञाता०८३ कुणपः। जम्बू० १७१। कईंबिणीओ-पदातिरूपाः। भग. ५४८1 कुणिमवावण्ण-व्यापन्नं-विशरारुभूतं कणिमं-मांसं यस्य कुडुंबिया- कतिपयकुटुम्बस्वामिनः। राज० १२१। स | जीवा० १०७ कडभगो-जलमंडओ। निशी. ४५अ। कुणिमाहरे-कुणपः-शबस्तद्रसोऽपि वसादिःकुडुग- बहुबीजविशेषः। भग० ८०३। कुणपस्तदाहारः कुणपाहारः। भग० ३०९। कुड्डतर- कुड्यान्तरं-कुडयं खटिकादिरचितं तेनान्तरं- कणियं-मरहट्ठविसए चोद्दिति कणियं वा भणंतो। निशी. व्यवधानं कुड्यान्तरम्। उत्त० ४२५ २९४ आ। गर्भाधानदोषाद् हस्वैकपादौ न्यूनैकपाणिर्वा कुड्ड-कुड्ड-भित्तिः । आव०६१९। कुड्यम्। ओघ० ९१, कुणिः । आचा० २३३ १५३। कायोत्सर्गे चतुर्थो दोषः। आव० ७९८1 कुड्यं- | कुण्डकोलिए-रूपकान्तः। उपासकदसायां मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [61] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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