Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 58
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] जीवा० ३६८० उत्त०६९५। पृथिव्याश्रितो जीवविशेषः। आचा० ५५ कुंडलवरावभासमहाभद्दः-कुण्डलवरावभासे गोमयनि-श्रितो जीवविशेषः। आचा०५५। षष्ठः द्वीपेऽपरार्ध-धिपतिर्देवः। जीवा० ३६८ चक्रवर्तिनाम्। निशी. २७६ आ। कुन्थुः-सप्तदशो कुंडलवरावभासमहावर-कुण्डलवरावभासे समुद्रेऽपरा - जिनः, मनोहरेऽभ्युन्नते महाप्रदेशे स्तूपं रत्नविचित्रं धिपतिर्देवः। जीवा० ३६८० स्वप्ने दृष्ट्वा प्रतिबुद्धा तेन तस्य कुन्थुरिति नामकृतम्। कुंडलवरावभासवर-कुण्डलवरावभासे सम्द्रे पूर्वार्द्धाधि- आव०५०५ पतिर्देवः। जीवा० ३६८१ कुंथू-कुः पृथ्वी तस्यां स्थितवानिति कुस्थः। आव० ५०५। कुंडला-कुण्डला सुकच्छविजये राजधानी जम्बू० ३५२। षष्ठः चक्रवर्तिनामः। सम० १५२ स्था० ३०२। कुन्थुः कुंडलाओ- विदेहेषु राजधानी, विशेषनाम। स्था० ८० षष्ठः चक्री। आव. १५९। त्रीन्द्रियजीवविशेषः। प्रज्ञा० कुंडलिक- मात्रकं हस्तो वा। ओघ० १६७। ४श कुंडलो- कुण्डलः अरुणवरावभाससमुद्रपरिक्षेपी | कुंथूपिवीलिया- कुन्थुपिपीलिका–त्रीन्द्रियजन्तुविशेषः। द्वीपविशेषः। ओघ० १६८। कुण्डलद्वीपपरिक्षेपी जीवा० ३२ समुद्रश्च। जीवा० ३६८। कुण्डलः कुंदं-कुन्दं कुसुमम्। प्रज्ञा० ३६१। जीवा० २७२। लताजम्बूद्वीपादेकादशकुण्डलाभिधानद्वीपान्तर्वी विशेषः। भग० ८०२। पुष्पजातिविशेषः। ज्ञाता०६९। कुण्डलाकारपर्वतः। प्रश्न. ९६। पुष्पविशेषः। जम्बू० ३५ कुंडागं-कुण्डाकं सन्निवेशः। आचा० २०९। कुंदकलिका- कवलपुष्पम्। प्रज्ञा० ९१। कुंडिआ-कुण्डिका। अनुयो० १५२॥ कुंदगुम्मा-कुन्दगुल्माः। जम्बू. ९८१ कुंडिका-कुण्डिका। उत्त० ११३। कुंदरुक्क-चीडाभिधानगन्धद्रव्यः। प्रश्न०७७ कुंडिगा-कुमण्डलू। बृह० २१ आ। कुंदु-वनस्पतिविशेषः। भग० ८०४ कुंडिनी- भीष्मराजधानी। प्रश्न०८८1 कुंदुरुक्क-चीडा। सम० १३८ सिल्हकम्। सूर्य० २९३। कुंडिय-कुण्डिका कमण्डलू। भग० ११३॥ कुक्कटरुत। आव०४०८। चीडा। ज्ञाता०४०। औप.५१ कुंडिया-कुण्डिका-कमण्डलू। प्रश्न. १५२। औप० ९५) वनस्पतिवेशषः। भग०८०४। कन्दुकः-चीडाभिधं आव० ३०५। आलुका। अनुत्त० ५। भग० ६६३। द्रव्यम्। जम्बू०१४४चीडा। प्रज्ञा० ८७। कुन्दुरुष्कःकुंडी-पानीयभाजनविशेषः। निशी० ६१ अ। चीडा। जीवा० १६०, २०६। कुंडुक्क- भूमिस्फोटकविशेषः। आचा० ५७) कुंदुलता- लताविशेषः। जीवा. १८२। कुंडुल्क- आलिन्दकम्। अनुयो० १५३। कुंदो- गुल्मविशेषः। प्रज्ञा० ३२ कुंढो- कुण्ढः-मायावी। उत्त० १०८ कुंभ- ललाटम्। बृह. १३ | आढकषष्ट्यादिप्रमाणतः। कुंत-भल्लः। आव० ५८८ प्रज्ञा० ९७। कुन्तम्। जीवा० स्था० ४६२। कुंभ एव, अहवा चउकढिं काउं कोणे कोणे ११७। कुन्तकं-एतावद्रव्यं त्वया देयमित्येवं धडओ बज्झति, तत्थ अवलंबिउं आरंभिउं वा संतरणं नियन्त्रणया नियोगिकस्य देशादेर्यत्समर्पणम्। विपा. कज्जति। निशी. ४४ आ। एगो घडणा वा। निशी० ७७ ३९। शस्त्रविशेषः। जीवा० १९३| कन्तः-भल्लाभिधः आ। मुनिसुव्रतनाथस्य प्रथमशिष्यः। सम० १५२॥ शस्त्रविशेषः। आव०६५१। एकोनविंशतितमः तीर्थंकरस्य पिता। सम० १५१। नवमकुंतग्गं- कुताग्रं-भल्लाग्रम्। स्वप्नः। ज्ञाता०२० नरके एकादशः परमाधार्मिकः। कुंतफल-कुन्तफलम्। आचा० ३११। उत्त०६१४१ आव.६५० सम० २९। मल्लिजिनपिता। कुंतल-शेखरकः। ज्ञाता० १३८ ज्ञाता० १२४। आव० १६१। सूत्र० १२४१ आढकानां षष्ट्या कुंती- पाण्डुराजपत्नी। प्रश्न० ८७। जघन्यः कुम्भः अशीत्या मध्यमः शतेनोत्कृष्ट इति। कुंथु-कुंथवः-सत्त्वाः । ओघ० १२६। अनुद्धरिप्रभृतिः। | ज्ञाता० ११९| घटः। आव० २९५४ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [58] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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