Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] एवायं शब्दो विशेषणार्थः। निर०७४ ५६९। कायिक्यादिक्रियाभिधानार्थः। अष्टमशते किमाइया-किमादिका-उपादानकारणव्यतिरेकेण चतुर्थोद्दे-शकः। भग० ३२८१ किमादिः मौलं कारणं यस्याः सा। प्रज्ञा० २५६। किरियट्ठाणं-क्रियास्थानम्। आव०६५८५ किमाई-किमादिः-मौलं कारणम्। प्रज्ञा० २५६) किरियठाणं-क्रियास्थानंकिमाहार-चतुर्दशशते षष्ठोद्देशः। भग० ६३०| सूत्रकृताङ्गस्याष्टादशमध्ययनम्। उत्त०६१६) किमिकुट्ठ- कृमिसंकुलं कोष्टमुदरं कृमिकोष्ठः। व्यव० किरियवादी-क्रियावादी जीवादिपदार्थसद्भावोऽस्त्येवेत्येवं ३५० अ। कृमिकृष्ठः-रोगविशेषः आ० ११६| सावधारणक्रियाभ्युपगमो यस्य सोऽस्तीति। सूत्र. २०२। किमिच्छए-कः किमिच्छतीत्येवं यो दीयते स क्रियां-जीवादिपदार्थोऽस्तीत्यादिकां वदितं शीलं यस्य किमिच्छकः। दशवै. ११७ सः। सूत्र० २०८१ किमिच्छय-यो यदिच्छति तस्य तद्दानं समयत एव किरियविसालं-क्रिया:-कायिक्यादिकाः विशालाःकिमि-च्छकम्। आव० १३६| विस्तीर्णाः सभेदत्वादभिधीयन्ते तत् क्रियाविशालम्। किमिण-कृपणः। स्था० ३४२। कृमयः सम० २६| अशुच्यादिसम्भवाः। उत्त०६९५। कतिपयकृमिवत्। किरिया- अनुष्ठानम्। स्था०५०३। क्रिया-सम्यक्संयमाज्ञाता०१७७ नुष्ठानम्। प्रज्ञा० ५९। कर्मबन्धः। ब्रह० ७१ आ। क्रियन्ते किमिणा- कृमिवन्तः। प्रश्न०६० मिथ्यात्वादिक्रोडीकृतैर्जन्तुभिरिति क्रियाः। किमिय-कृमिकः जन्तुविशेषः। आव०११७ कर्मबन्धनिबन्ध-नभूताश्चेष्टाः। उत्त०६१३। अस्ति किमियडसंठितो-आवलिका बाह्यस्याष्टमं संस्थानम्। परलोकोऽस्त्यात्माऽस्ति च सकलक्लेशाकलकितं जीवा.१०४१ मुक्तिपदमित्यादिप्ररूणात्मिका क्रिया। भग० ९२५। किमिरागकंबले- कृमिरागेण रक्तः कम्बलः आस्तिकता। स्था० ४०८ कायिक्यादिका आस्तिक्यमात्रं कृमिरागकम्बलः। प्रज्ञा० ३६१| वा। सम० ५। कायिक्यादिः संयमक्रिया च। नन्दी० २४११ किमिरागो- कृमिरागः। जम्बू० ३४। अनुष्ठानम्। स्था० ५०४। क्रिया-चारित्रम्। व्यव० ४५७ किमिरासि- वनस्पतिविशेषः। भग० ८०४। आ। वैद्योपदेशाद् औषधपानम्। निशी० पू० १०१। साधारणबादर-वनस्पतिकायविशेषः। प्रज्ञा० ३४। क्रिया-अस्तिवादरूपा। दशवै० २४२। सदन-ष्ठानम्। सूत्र. किमुलग-वनस्पतिविशेषः। भग० ८०२। ३६१। अस्ति परलोक इत्यादिप्ररूपणात्मिका। उत्त० १७ कियाडियाए- कर्णेन। व्यव० ९आ। करणं क्रिया, कर्म-बन्धनिबन्धना चेष्टा। आव०६४२ किर-किल-परोक्षाप्तवादसूचकः। उत्त० ३४३,। अपारमा- भग० १२१। प्राणा-तिपातादिका। जीवा० १२८। एतन्नामा र्थिकत्वख्यापकः। उत्त० ३४३। परोक्षाप्तवादसूचकः भगवतीसूत्रस्य तृती-यशतकस्य तृतीयोद्देशकः। भग. सम्भा-वने। उत्त०७१२। परोक्षाप्तवादसूचकः। उत्त. १८६ क्रिया करणं तज्जन्यत्वात् कर्मापि क्रिया। क्रियत ६२० संशये। आव. २४०| परोक्षाप्तागमवादसंसूचकः। इति क्रिया कर्म एव। भग०१८२ करणं क्रियाआव० १३०| किल-लक्षणमेवास्येदमभिधीयते न पुनस्तं कर्मबन्धनिबन्धनचेष्टा। प्रज्ञा०४३५। प्रज्ञापनाया कोऽपि छेत्तुं वाऽऽरभत इत्यर्थसंसूचनार्थः। भग० २७६। द्वाविंशतितमं पदम्। प्रज्ञा०६। क्रिया। आव० ११६ । किराइं-किल। आव. ९११ अत्थिवादो। दशवै० १३ किराडयं-किराटकं द्रव्यम्। आव० ८२२ किरियाठाणा- क्रियास्थानानि करणं क्रिया-कर्मबन्धनि किरिकिरिया-तेषामेव वंशादिकम्बिकातोदयम्। आचा० बन्धनचेष्टा तस्याः स्थानानि-भेदाः-पर्यायाः ४१२ क्रियास्थानानि। सम० २५। सूत्रकृताङ्गस्य किरिमालए-किरिमालकः। दशवै. ५१। द्वितीयश्रुतस्कन्धे द्वितीयमध्य-यनम्। सम०४२। किरिय-क्रिया-सम्यग्वादः। आ०७६२२ चिकित्सा। आव० | सूत्रकृताङ्गस्य दवितीय मध्ययनम्। स्था० ३८७। मनि दीपरत्नसागरजी रचित [54] "आगम-सागर-कोषः" [२]

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200