Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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किण्हा- नदीविशेषः। स्था० ४७७। कृष्णा-ईशानदेवेन्द्रस्य च। उत्त० ३७९। अलोभोदाहरणे प्रथमाऽग्रमहिषी। जीवा० ३६५
श्रावस्त्यामजितसेनाचार्यस्य महत्त-रिका। आ०७०१। किण्होभासे- कृष्णप्रभः कृष्ण एव वाडवभासत इति कित्तिय-कीर्तितं-जनेन समत्कीर्तितं कीर्तिदं वा। कृष्णावभासः। ज्ञाता०४| कृष्णवर्ण एवावभासते- औप.५ कात्तितः स्वनामभिः प्रोक्तः। आव. ५०७ दृष्ट्रणां प्रणिभातीति कृष्णावभासः। ज्ञाता०७२। कित्तिया-कीर्तिता प्रदर्शिता। आचा० ४२। कृत्तिकाकितिकम-वंदणं। निशी० २३८ अ। वेयावच्चं। निशी । अग्निभूतेर्जन्मक्षत्रम्। आव० २५५ ८०आ। कृतिकर्म। आव० ७९३। विस्सामणं-निशी. २१३ | कित्तिसेणो-कीत्तिसेनः-ब्रह्मदत्तपत्न्या अ। कृतिकर्म-द्वादशावतवन्दनम्। ओघ० १३९| | कीर्तिमत्याः पिता। उत्त० ३७९। कृतिकर्म-वंदनकं, विश्रामणादिकं वा। व्यव० ७२ । । | कित्ती-कीतिः एकदिग्गामिनी। प्रश्न० ८६। कीर्तिः कृतकर्म-विश्रामणा। व्यव० १८३ ।
ख्याति-हेतुत्वात्। अहिंसायाः पञ्चमं नाम। प्रश्न. ९९। कितिकम्माति-कृतिकर्माणि-विश्रामणा। व्यव० १७४। दानपुण्यफ-लभूता, एकदिग्गामिनी वा प्रसिद्धिः। प्रश्न कित्तइस्सामि-कीर्तयिष्यामि-प्रतिपादयिष्यामि। दशवै. १३६। दानकृता एकदिग्गामिनी वा प्रसिद्धिः। औप० १०८। १५
एकदिग्गामिनी प्रसिद्धिः। बृह. ३६ आ। कित्तणं-कीर्त्यते-संशब्दयते येन कारयिता तत् कित्तीजीवियं-कीत्तिजीवितम्। आव० ४८० कीर्तनं देवकुलादि। प्रश्न. ९५१
कित्तीपुरिसा-कीर्तिप्रधानाः पुरुषाः कीर्तिपुरुषाः स्था० कित्तणयं-कीर्तनं शब्दनम्। आव० १८१।
४४८ कित्तणा-कीर्तना संशब्दना। आव० ४९२।
कित्तीपुरिसो-कीत्तिपुरुषः वासुदेवः। आव० १५९। कित्ति-कीतिकूट-केसरिह्रदसुरीकूटम्। जम्बू० ३७७।। | कित्तेइ-कीर्तयति-तत्समाप्तौ इदमिदं कीर्तिः एकदिग्व्यापी। भग० ६७३। दशवै० २५७। एक- चेहादिमध्यावसानेषु कर्तव्यं तच्च मया कृतमिति दिग्गामिनी प्रख्यातिर्दानफलभूता वा। भग० ६४३। कीर्तनात्। उपा० १५ जातित-पोबाह श्रुत्यादिजनिता। लाधा। दानसाध्या। । किन्न-कीर्णः क्षिप्तः। स्था०४६४। सूत्र. १८२। दानपुण्यफला। आव०४९९| प्रसिद्धिः। प्रश्न | किन्नग्गन्थे-कीर्णः-क्षिप्तः ग्रन्थो३६। केसरि-हदे देवताविशेषः। स्था०७३। सर्वदिग्व्यापी धनधान्यादिस्तत्प्रतिबन्धो वा येन स किर्णग्रन्थः। स्था० साधुवादः। स्था० ५०३। एकदिग्गामीनी प्रसिद्धिः। भग. ४६४१ ५४१। दान-पुण्यफला कीर्तिः। स्था० १३७)
किन्नपुडगसंठिओ-आवलिकाबाह्यस्य नवमं गुणोत्कीर्तनरूपा प्रशंसा, एकदेशगामिनी पुण्यकृता वा संस्थानम्। जीवा० १०४१ कीर्तिः प्रज्ञा०४७५
किब्बिस-किल्बिषस्य पापस्य हेतुत्वात्, कित्ति(त्ती)- चतुर्थवर्गे चतुर्थमध्ययनम्। निर० ३७। दवितीयाधर्मदवार-स्याष्टादशं नाम। प्रश्न २६। पापाः। प्रख्यातिः। ज्ञाता० २२०
बृह० २१२ आ। कित्तिकर-दानपुण्यफला कीर्तिस्तत्करणशीलः किब्बिसभावणा-किल्बिषभावना। उत्त० ७०७ कीर्तिकरः। आव०४९९।
किब्बिसिआ-किल्बिषिकाः-परविदूषकत्वेन कित्तिताइं-कीर्तितानि-संशब्दितानि नामतः। स्था० पापव्यवहारिणो भाण्डादयः। जम्बू. २६७।
पातकफलवन्तो निःस्वान्ध-पवादयः। ज्ञाता०५७। कित्तिम- कृत्रिमः-योगेन निष्पन्नः। ओघ० १६८१ किल्बिषं-पापं उदये विदयते येषां ते किल्बिषिकाः कृत्रिमः-क्रमेण शिल्पिकर्षकादिप्रयोगनिष्पन्नः। जम्बू. | पापाः। स्था० १६२
| किमंग पुण-किं पुनरिति पूर्वोक्तार्थस्य कित्तिमई- कीर्तिमती, कीर्तिसेनसुता ब्रह्मदत्तराज्ञी | विशेषद्योतनार्थम् अङ्ग्रेत्यामन्त्रणे यद्वा परिपूर्ण
२९७।
६९
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]

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