Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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किटिकूडं-देवविमानविशेषः। सम. ९।
२६ किट्ठघोसं-देवविमानविशेषः। सम० १२
किढिणसंकाइयगं-किढिणंकिद्विजुत्तं-देवविमानविशेषः। सम. ९।
वंशमयस्तापसभाजनविशेषस्ततश्च तयोः साइकायिक किद्विज्झयं-देवविमानविशेषः। सम. ९।
भारोदवहनयन्त्रं किढिणसाड़कायिकम। भग.५१६। किढिप्पभं-देवविमानविशेषः। सम. ९।
किढिणपडिरुवगं- कढिनप्रतिरूपकं-कढिनं किट्ठिया-अनन्तकायविशेषः। भग. ३००
वंशमयस्तापस-सबन्धीभाजनविशेषस्तत्प्रतिरूपकं किट्ठियावत्तं- देवविमानविशेषः। सम० ९।
तदाकारं वस्तु। भग० ३२२ किहिलेसं-देवविमानविशेषः। सम० ९|
किढिदासी-काष्ठिकीदासी। आव. २३७। किद्विवण्णं-देवविमानविशेषः। सम. ९।
किढिया-| निशी० १३६ आ। स्थविरा माता। ब्रह. ११४ किहिसाविया | निशी. ३२९ अ।
। किद्विसिंग- देवविमानविशेषः। सम० ९
किढी-थेरी। बृह. १९८ आ। स्थविरा स्त्री। बृह. १११ अ। किट्ठिसिटुं-देवविमानविशेषः। सम. ९।
काष्ठिकी। आव. २३७ किहत्तरवडिंसगं-देवविमानविशेषः। सम० ९|
किणा-किम्जिन्मात्रा। पिण्ड० १७३। किठी-साधारणबादरवनस्पतिकायविशेषः। प्रज्ञा० ३४।। किणिऊणं-क्रीत्वा। आव० १९८१ किडए-पाककुम्भी। निशी. ३०३ अ।
किणित्ता-जातिगितविसेसो। निशी० ४३ आ। किडिकिडिया-किटिकिटिका
किणिया- किणिका-ये वादित्राणि परिणयन्ति वध्यानां निर्मासास्थिसम्बन्ध्युपवेश- नादिक्रियासमुत्थः। च नगरमध्ये नीयमानानां पुरतो वादयन्ति। व्यव० २३१ शब्दविशेषः। भग० १२५ निर्मासास्थि-सम्बन्धी उपदेशनादिक्रियाभावीशब्दविशेषः। ज्ञाता०७६) किण्णं- कानि-किंविधानि। भग० १०९। किडिभं-कुट्ठभेदो। निशी० ६२ अ। जंघास कालाभं रसियं । किण्णरछाया- किन्नरछाया-छायागतिभेदः। प्रज्ञा० ३२७। वहति। निशी० १२७ आ। शरीरैकदेशभाविकु-ष्ठभेदः।। | किण्णा लद्धा-केन हेतुना लब्धा-भवान्तरे उपार्जिता। बृह. २२२ । रोगविशेषः। निशी. १८८
ज्ञाता० २५० किडिम(भ)-किडिमः-क्षुद्रष्ठविशेषः। भग० ३०८। किण्णे-केन हेतुना। भग. १६३ किड्डति-अन्तर्भूतकारितार्थत्वादन्यान् क्रीडयन्ति। | किण्ह-वल्लीविशेषः। प्रज्ञा० ३२| कृष्णवर्णः-अञ्जनवत् भग०६१८
स्वरूपेण। ज्ञाता० ७८ किड्डा-पाशककपर्दकैः क्रीडन्ति। ओघ. १६। क्रीडाप्रधाना | साधारणबादरवनस्पतिकायविशेषः। प्रज्ञा० ३४। दशा क्रीडा, दशदशायां द्वितीयादशा। स्था०४१९। क्रीडा- | किण्हकेसरे-कृष्णकेशरः-कृष्णबकुलः। प्रज्ञा० ३६२ जन्तोदवितीया दशा। दशवै. ८ दवितीयादशा। निशी जम्बू. ३२॥ २८ आ।
किण्हगुलिया-उदायनदासी। निशी० ३४६ आ। किड्डावियाए-क्रीडापिका, क्रीडनधात्री। ज्ञाता० २१९। किण्हचामरज्झय- कृष्णचामरध्वजा कृष्णचामरयुक्ता किढ-वृद्धः। बृह. २५६ आ।
ध्वजा। जीवा. १९९। किढग-किटकः-वृद्धः। व्यव० २३४ अ।
| किण्हपक्खिए- कृष्णपाक्षिका-शुक्लानां आस्तिकत्वेन किढिण-वंशमयस्तापसभाजनविशेषः। निर०२६। विशुद्धानां पक्षो-वर्गः शुक्लपक्षस्तत्रभवाः शुक्लपाक्षिकाः किढिनं-वंशमयस्तापससम्बन्धोभाजनविशेषः। भग. | तद्विपरीतास्तु कृष्णपाक्षिकाः। स्था० ६१| ३२२, ५२०
| किण्हपत्ता- चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषः। जीवा० ३२॥ किढिणसंकाइयं-किढिणं-वंशमयस्तापसभाजनविशेषः, | चतुरिन्द्रि-स्य य विशेषः। प्रज्ञा०४२॥ सांकायिकं-भारोदवहनयन्त्रं किढिणसांकायिकम्। निर० | किण्हसिरी-षष्ठं चक्रवर्तिनः स्त्रीरत्नम्। सम० १५२
जाग
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
[52]
"आगम-सागर-कोषः" [२]

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