Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 49
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] ३१ वस्तुनाशे कालोपक्रमः। अनुयो०४८। कासवे-स्थविरविशेषः। भग० १३८ कश्यपःकालोवाय-कालोपायः-अपायभेदः। दशवै०४० अन्तकृद्दशानां षष्ठमवर्गस्य चतुर्थमध्ययनम्। अन्त० कावालिए- अस्थिसरजस्कः। बृह. ९०| कापालिकः- १८1 राजगृहे गाथा-पतिः। अन्त० २३ वृथाभागी। आव० ६२८१ उत्तराफाल्गुन्याः गोत्रनाम। जम्बू. ५००। काश्यपगोत्रो काविट्ठ-महाशुक्रकल्पे विमानविशेषः। सम० २७५ महावीरः। उत्त० ८३। ऋषभस्वामी वर्धमानस्वामी वा। काविलिज्ज-कापिलीयं, उत्तराध्ययनेष्वष्टमध्ययनम्। सूत्र०६८। कौशम्ब्यां राजबहुमतो ब्राह्मणः। उत्त० २८६) उत्त०२८६ नापितस्य सम्बन्धिक्षुरगृहम्। बृह. १८४ अ। काविलियं-उत्तराध्ययनेषु अष्टममध्ययनम्। सम०६४। | कासवए-काश्यपः-नापितशिल्पः। आव० १३२ काविसायण-कपिशायनं-मदयविशेषः। जम्बू. १०० कासवग-काश्यपः-नापितः। भग० ४७२। सूत्र. ११६) कावो-कावः-कापडिवाहकः। जीवा० २८११ कासवगा- षष्ठीश्रेणिविशेषः। जम्बू. १९३। कावोडी-कापोती-तुलाकारं पानीयानयनसाधनम्। दशवै. | कासवगोत्ते-काश्यपगोत्रम्। सूर्य. १५० १३५१ दशवे. ५७ आर्यजम्बुनामान–गारस्य गोत्रम्। ज्ञाता०१३ कावोय-कावडिवाहकः। अनुयो०४६। कासवनालियं- श्रीपर्णीफलम्। आचा० ३४९। दशवै. १८५ कावोयलेस्सा-कापोतस्य पक्षिविशेषस्य वर्णेन तुल्यानि | कासवसंहियट्ठाण-यस्तु ग्राम एव त्रिकोणतया निविष्टः यानि द्रव्याणि धूम्राणि इत्यर्थः, तत्साहाय्याज्जाता वृक्षा वा त्रयो यस्य बहिस्त्र्यस्त्राः स्थिताः एकतो द्वौ कापोतलेश्या मनाक् शुभतरा सा लेश्या येषां ते। स्था० अन्यतस्त्वेकः काश्यपसंस्थितः। बृह. १८४ अ। कासवा- कशे भवः काश्यः-रसस्तं पीतवानिति काशा- शर्कराः। प्रज्ञा० ३६६। काश्यपस्त-दपत्यानि काश्यपाः। स्था० ३९० काशिमण्डलं-काशिदेशः। उत्त०४४८ कासवी-पञ्चमतीर्थकरस्य प्रथमा शिष्या। सम० १५२| काश्यपादीनि-गोत्रविशेषः। सम० ११२ कासाइअ-कषायेण-पीतरक्तवर्णाश्रयरञ्जनीयवस्तुना काष्टपादुके- मौजे। सूत्र० ११८१ रक्ता काषायिकी शाटिकेत्यर्थः। जम्ब० १८९। काष्टमूलं-चणकचवलकादिकं द्विदलम्। बृह० २६७ आ। | कासायं-काषायिकं-वस्त्रविशेषः। आव० ३५२१ काष्टमूलरसं-चणकचवलकादिद्विदलं तदीयेन रसेन कासि-काशीजनपदो यत्र वाणारसी नगरी। ज्ञाता० १२५ यत्परि-माणितम्। पानकम्। बृह. २६७ आ। कासिभूमि-काशीभूमिः-काश्यभिधानो जनपदः। उत्त. काष्ठश्रेष्ठी- पारिणामिकीबद्धौ दृष्टान्तः। नन्दी.१६६) ३८३ श्रमण-विशेषः। बृह. ९४ । कासी-काशी-जनपदविशेषः। ज्ञाता०१४११ प्रज्ञा० । काष्ठाशब्दः- प्रकर्षवाची। सूर्य. १३ वाणारसी, तज्जनपदोऽपि काशी। भग० ३१७ कासंकासे-कासंकषः। आचा० १३९। अष्टाशीतौ महाग्रहे सप्तचत्वारिंशत्तमः। भग०६८० कास-कासः-रोगविशेषः। भग. १९७। गच्छाविशेषः। कासीअ-अकार्षीत्। उत्त. ३२२ प्रज्ञा० ३२ अष्टाशीतौ महाग्रहे सप्तचत्वारिंशत्तमः। कासीस-रागद्रव्यः। ज्ञाता०२३१| स्था०७९ कासो-इक्ख्। दशवै० ५८१ कासगो-कर्षकः। निशी. १४३ आ। काह- कदा। भग० ११६| कासणं-काशनं-खाटकरणम्। ओघ० ९२ काहए-अकथयत्। उत्त०४८० कासय-कर्षकः-कृषीवलः। उत्त० ३६१। काहरो-कापोतिकः-जलवाहकः। दशवै० १३५ कासरनालियं-सीवण्णिफलं। दशवै० ८६| काहलं-फल्गुप्रायम्। बृह० ४५ आ। कासवं-काश्यपस्यापत्यं काश्यपः तं काश्यपगोत्रम। | काहला- खरमुही। जम्बू. १९२॥ तस्स मुहत्थाणे खरनन्दी०४८ | मुहाकारं कट्ठमयं मुहं कज्जति खरमुखी। निशी० ६२। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [49] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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