Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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कवइय-कवचिका-सन्नाहविशेषः। औप०६२भग. | कविकच्छु-कविकच्छूः-तीव्रकण्डूतिकारकः फलविशेषः। ३१७
प्रश्न. १६४१ कवए- कवचः कङ्कटः। भग० ३१८ तनुत्राणम्। जम्बू० | कविकच्छू-कपिकच्छूः-खज्र्जुकारी। ज्ञाता० २०४। २१९।
कविचियाओ-कलाचिकाः। भग. १४८ कवचं-ककट-आवरणं। जीवा० १९३। सन्नाहविशेषः। | कविट्ठ-कपित्थं फलविशेषः। प्रज्ञा० ३६४। फलविशेषः। ज्ञाता०२२११
आव०७९८ प्रज्ञा० ३२८ भग०८०३। कपित्थफलम्। कवड-कपट-वेषपरावर्तादिर्बाह्यो विकारः। आव० ५६६। दशवै. १८५। बहुबीजफलविशेषः। प्रज्ञा० ३२ देशभाषानेपथ्यादिविपर्ययकरणम्। सूत्र. ३२९।
कविठ्ठपाणगं-पानकभेदः। आचा० ३४७ वेषभाषावै-परीत्यकरणम्। प्रश्न. ५८
कविठ्ठलता-कपित्थलता। आव. १७३। भाषाविपर्ययकरणम्। प्रश्न. २७। वेषाद्यन्यथात्वम्। कवित्थ- कपित्थं फलविशेषः। उत्त०६५३। ज्ञाता० १५८। वेषादिविपर्ययकरणम्। ज्ञाता० २३८ कवियच्छ- कपिकच्छ:-कण्डविजनको वल्लीविशेषः। परवञ्चनाय वेषान्तरकरणम्। जम्बू. १६९।
जीवा. १०७ नेपथ्यभाषाविपर्ययकरणम्। ज्ञाता०८० वञ्चनाय कविल-कपिलः-पक्षविशेषः। ज्ञाता०२३१। प्रश्न. ८1 वेषान्त-रादिकरणम्। भग० ३०८
सुस्थिताचार्याणां शिष्यः। निशी. ३१। ग्रन्थार्थकवडसड्ढओ-कपटश्राद्धः। आव० ७९९।
परिज्ञानशून्यः। परिव्राजकविशेषः। औप० ९१। कवड्डगा-ताममयं नाणकम्। निशी० ३३० अ। राजपुत्रविशेषः। मरीचिशिष्यः। आव० १७० स्थिकवय-कवचः कङ्कटः। भग० १९३। सन्नाहविशेषः। ताचार्यशिष्यः वेदत्रयानुभववान्। बृह० ९८ । क्षुलकजम्बू. २०५। तन्त्राणम्।जीवा० २५९। परिकरः। प्रश्न. श्रमणः। निशी० ७८ अ। राजगृहनगरे ब्राह्मणः। व्यव० ७५
१६६। नगरबाहिरिकायां ब्राह्मणः। आव०६९१। कवर्गप्रविभक्तिकं-पञ्चदशो नाट्यविधिः। जम्बू० ४१७) कौशाम्ब्यां काश्यपपुत्रः। उत्त० २८६। लोभेदृष्टान्तः। कवल-आहारविशेषः। स्था० ९३। ट्यण्डकमात्रा। क्षुल्लविशेषः। निशी. ७८ अ। कपिलः। उत्त० २८६) ओघ०१८२| कवलः। आव०८४४।
चम्पानगर्यां कपिलनामा वासदेवः। ज्ञाता०२२२१ कवलकः-उपकणभेदः। आचा०६०
कविला-नामविशेषः। विनयबहमानचतर्थभङ्गे कवलग्गाहो-कवलग्राहः-गलकण्टकापनोदाय
दृष्टान्तः। निशी ८ अ। कपिला-दानस्यादात्री स्थूलकवलग्र-हण, मखविमर्दनार्थं वा
श्रेणिकस्य दासी। आव०६८१| दंष्ट्राधःकाष्ठखण्डदानम्। विपा०८१।
कविलिए- कृष्णपुद्गलस्य भेदविशेषः। सूर्य २८७। कवल्ली-कवली-गुडादिपाकभाजनम्। विपा०५८ कविल्ली-कटाहः-लोहभाजनविशेषः। आव० ३६९। कवल्लीओ- लोही। निशी. ३१७ अ।
मण्डनकादिपचनिका लोही। अनुयो० १५९। कवाड-कपाटं-द्वारयन्त्रम्। दशवै०१८४ कपाटं- कविसाणए- कपिशायनं-मदयविशेषः। प्रज्ञा० ३६४। प्रतोलीद्वा-रसत्कम्। जीवा. १५९। कपाटानि
कविसीसं-कपिशीर्षकं-प्राकाराग्रम्। आव० २३१| प्रतोलीद्वारसत्कानि। प्रज्ञा० ८६।
कविसीसए-कपिशीर्षकः-प्राकाराग्रम्। जम्बू. ३२० कवाडोभिन्न-यद् पिहितं कपाटं उद्भिद्य -उद्घाट्य कविसीसग-कपिशीर्षकः। ज्ञाता० ९९। जीवा० २१९। साधुभ्यो दीयते तत् कपाटोद्भिन्नम्। पिण्ड० १०५ कविहसितं-आगासे विकृतरूपं म्खं वाणरसरिसं हासं कवाल-कपालं-कर्परम्। सूत्र. २९८ घटखर्परादि। करेज्ज। निशी० ७५। आचा०३११
कविहसियं-कपिहसितं, यदाकाशे वानरसदृशं विकृतं कविंजला-लोमपक्षिविशेषः। प्रज्ञा०४९।
मुखं हासं कुर्यात्। आव० ७५०। अकस्मान्नभसि कविकं-खलिनम्। आव० २६१। दशवै०४९।
ज्वलद्धीमशब्द-रूपम्। जीवा० २८३। कपिहसितं-अनभ्रे
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]

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