Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 34
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] ४९६| कलिमलं-मलः। तन्दु कलिं- कलिः-एककः। सूत्र०६७। कलियोगकलिओगे-कल्योजकल्योजे पञ्चादयः। भग. कलिंग-कलिङ्ग-जनपदविशेषः, ९६४। करकण्डूत्पत्तिस्थानम्। उत्त. २९९। नैमित्तिकः। कलियोगतेओगे-कल्योजत्र्योजे राशौ सप्तादयः। भग० आचा० ३५९। कलिङ्गः-द्रव्य-व्युत्सर्गे देशविदेशेषः। ९६४ आव०७१६। जनपदविशेषः। प्रज्ञा०५५ देशविशेषः। कलियोगदावरजुम्मे-कल्योजद्वापरेषडादयः। भग. ओघ० २१। शिल्पसिद्धदृष्टान्ते देशविशेषः। आव०४१० | ९६४१ देशविशेषः। व्यव० ४१४ । कलुणा-करुणा-दयास्पदभूता, करुणं वा पालयतीति। कलिंगराया-कलिङ्गराजा-द्रव्यव्युत्सर्गेकरकण्डुः। आव० प्रश्न. १९। कृपास्थानम्। पिण्ड० १११। दीना। दशवै. ७१६) २४८१ रका। निशी. १०६अ। कलिंच-क्षुद्रकाष्ठरूपः। भग० ३६५। वंशकप्परी। बृह. ६८ | कलुणो- कृत्सितं शैत्यनेनेति निरुक्तवशात् करुणः, आ। वंसकपड्डी। निशी. ११६ आ। निशी. २२० । | करुणा-स्पदत्वात्, प्रियविप्रयोगादिदुःखहेतुसमुत्थः निशी० १०५ आ। शोकप्रकर्षस्व-रूपः करुणो रसः। अनुयो० १३५१ कलिंज-फलविशेषः। ओघ० १८७। वंसमयो कडवल्लो। कलुयावासा-द्वीन्द्रियविशेषः। प्रज्ञा०४१। निशी०५९ । कलुषसमापन्नः-नैतदेवमिति। विपर्यस्त इति। स्था० कलि-जधन्यः कालविशेषः। कलहो वा। अनुयो० १३८१ २४७ प्रथमो भगः बृह. १८०आ। एकः। उत्त० २४८। भग० कलुसमावन्ने-कलुषमापन्नः-नाहमिह कि ଓ୩ श्चिज्जानामीत्येवं स्वविषयं कालुष्यं समापन्न इति। कलिऊण-कलयित्वा-विज्ञाय। दशवै०५९। भग० ११२। नैतदेवमिति प्रतिपत्तिकः। स्था० १७६) कलिओए- एकपर्यवसितः कल्योजः। स्था० २३७। मतिमालिन्यमुपगतः। ज्ञाता०९५) कलिना-एकेन आदित एव कृतयुग्माद्वोपरिवर्तिना | कलुससमावन्न-कल्षसमापन्नः। भग०५४। ओजो-विषमराशिविशेषः कल्योजः। भग०७४५। | कलुसा- कलुषयन्त्यात्मानमिति-कलुषाः कषायाः। कलिओग-कल्योजः पर्वराशौ चर्भिर्भक्ते सति यद्यकः आव० ५८९| कलुषयन्ति-सहजनिर्मलं जीवं कर्मरजसा शेषो भवति तदा स राशिः। सूर्य. १६७। मलिनयन्ति इति कलुषाः कषायाः। बृह. १४१ आ। कलिओगकडजुम्मे- कल्योजकृतयुग्मे, चतुरादयः। भग० | कलेवर- मनुष्यशरीरम्। जीवा. १८०। शरीरम्। उत्त० ९६४॥ ३४१। शरीराणि। कलेवराणिकलिकरंडो- कलिकरण्डः कलीनां-कलहानां करण्ड इव असखयातखण्डीकृतवालुका-कणरूपाणि। भग०६७६| भाजनविशेष इव। परिग्रहस्यैकोनविंशतितमं नाम। कलेवराणि-मनुष्यशरीराणि। जम्बू. २३। प्रश्न. ९२२ कलेवरसंघाडा-कलेवरसङ्घाराः-मनुष्यशरीरयुग्मानि। कलिकलंडो-कलिकारकः। आव० ३९०| जीवा० १८०। कलेवरसङ्घाटाः-मनुष्यशरीरयुग्मानि। कलिकलहो- कलिकलहः-राटीकलहः। प्रश्न० ४३। जम्बू० २३॥ कलिकलुसं-कलिकलुषम्। उत्त० ३३१। कलहहेतु कलुषं कलेसुयं-तृणविशेषः। सूत्र० ३०९। मलीमसम्। विपा० ४० कलो- चणओ। निशी० ६३आ। निशी. ४० कलिका- मुकुलं, कुङ्मलम्। जीवा० १८२। कलोवाइओ-पिच्छी-पिटकं वा। आचा० ३२७। कलितोए- एकपर्यसितः कल्योजः। स्था० २३८५ कल्कः-कक्क-कषायद्रव्यक्वाथ। आचा० ३६३। कलित्तं- कटित्रं-कृत्तिविशेषः। औप. १० कडित्रं कत्ति- | कल्पतपसा- तपविशेषः। आचा. २०३। विशेषः। ज्ञाता०६। कल्काचारः-आचारविशेषः। आचा० २०२। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [34] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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