Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 32
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] करोति-स्मरणे वर्तते न निष्पादने। नन्दी. १७ | कलंत-उत्काल्यमानः। मरण। कर्कट:- पृथिव्याश्रितो जीवविशेषः। आचा० ५५। कलंदे-दिशाचरविशेषः। भग०६५९। कर्कशः-स्पर्शस्य प्रथमभेदः। प्रज्ञा० ४७३। कलंपि-कलामपि-मनागपि। व्यव० २२६ आ। कर्कशस्पर्शः- यदुदयाज्जन्तुशरीरेषु कर्कशः स्पर्शी कलंबचीरपत्तं-कलम्बचीरः। शस्त्रविशेषः। विपा० ७१| भवति, यथा पाषाणविशेषादीनां तत्। प्रज्ञा० ४७३। कलंबचीरिया-कदम्बचीरिका-तृणविशेषः, कर्केतन-रत्नविशेषः। सम० १३९। दर्भादप्यतीव-छेदकः। जीवा० १०८ कर्कोलकं- फलविशेषः। जीवा० १३६। कलंबचीरियापत्तं-कदम्बचीरिकापात्रम्। जीवा० १०६) कण्ण-कर्ण:-श्रवणः। आचा० ३८ कलंबवालुया- कदम्बपुष्पाकारा वालुका कदम्बवालुका। कर्णकं-भाजनस्योद्धर्वभागः। ओघ. १६८। प्रश्न. २०० कर्णगति- कन्दादारभ्य शिखरं यावदेकान्तऋजुरुपायां | कलंबाणं-वनस्पतिविशेषः। भग० ८०३। दवरिकायां दत्तायां यदपान्तराले क्वापि कियदाकाशं कलंबुगा-कलम्बुका सन्निवेशविशेषः। आव० २०६। तत्सर्वम्। जम्बू० ३६३। कलंबुया- जलरुहविशेषः। प्रज्ञा० ३३१ कर्णपर्पटका-शष्कुली। नन्दी० ७५ कलंबुयापुप्फं-कलम्बुयापुष्पं-नालिकापुष्पम्। सूर्य०७१। कईमजलम-यद घनकर्दमस्योपरि वहति। ओघ०६२। जीवा० ३३९। जम्बू० ४५३। कलम्बुकापुष्पसंस्थानसंकर्पूरं-निर्यासवस्तुविशेषः। जीवा० १३६। स्थितं श्रोत्रेन्द्रियम्। प्रज्ञा० २९३। कर्परः- घटखण्डम्। नन्दी०६३। कलंबुवालुयापुढे-कदम्बवाल्कापृष्ठम्। आव०६५१| कोसी- गुच्छविशेषः। आचा० ३० कलंबो-पिशाचानां चैत्यवृक्षः। स्था० ४४२। कर्बुर- कर्णविशेषः। आचा. २९। बकशः-शबलो वा। भग. कल-मधुरः। जम्बू० २०६। कलायास्त्रिपुराख्या ८९१। स्था० ३३६| वृत्तचणका वा। जम्बू. १२४। धान्यविशेषः। भग० ६८४। कर्म-सिद्धशब्दपर्यायः। स्था० २५१ आर्यभेदः। सम.१३५ पकजलम्। उत्त. ३९१| धनं। निशी. २०५ आ। पड्कः। कर्मकल्क-कर्मसारः। प्रज्ञा० ३३१| पिण्ड० १०२। कर्दमः। भक्त० । कलं- माधुर्यविशिष्ट कर्मनिषेकः-तद्भवजीवितम्। आव० ४८० ध्वनिविशेष-रूपम्। प्रश्न. १५९। कलाःकर्मभूमिजा-भूमिविशेषजन्मा। सम० १३५। अत्यन्तश्रवणहृदयहरा अव्यक्त-ध्वनिरूपा, अथवा कर्मक्षय- सिद्धशब्दपर्यायः। स्था० २५४ कलावन्तः-परिणामवन्त इत्यर्थः ज्ञाता० २३३। कर्मद्रव्यकषायाः- तत्रादित्सितात्तानुदीर्णाः पुद्गला औषधिविशेषः। प्रज्ञा० ३३। कला-वृत्तचनकाः। पिण्ड. द्रव्य-प्रधानात् कर्मद्रव्यकषायाः। आचा० ९१| १६८1 कर्ममास-त्रिंशदहोरात्रप्रमाणः। सूर्य. २११ स्था० ३४५) कलकल-उपलभ्यमानवर्णविभागः। औप० ५७) कर्मसार:-कर्मणः सारः। प्रज्ञा० ३३१| उपलभ्य मानवचनविभागः। भग० ४६३। कर्षादीनि-मापविशेषः। स्था०८८1 कलकलशब्दयोगात् कल-कलम्। प्रश्न. १९| यत् कलं-कलाम भागम्। उत्त. ३१६। शोभाया अंशः। ज्ञाता० कलकलशब्दं करोति तत् कलकलं अतितप्तमिति। १३१| प्रश्न. १६४| चूर्णादिमिश्रजलम्। विपा० ७०| आचा० कलंक- कलङ्क-दुष्टतिलकादिकं चित्रादिकं वा। जीवा. ३३१। कलकलः व्याकुलशब्दसहूहः। जम्बू० ४६३। २७७। दुष्टतिलकादिकम्। औप० १६| व्याकुलशब्दसमूहः। सूर्य. २८१। कलंकलियवायं- कलङ्कलिकावातम्। आव० २१७ कलकलंत-अतिक्वाथतः कलकलशब्दं कुर्वन्ति। उत्त० कलंकलीभागिणो-कलकलीभावभाजः। सूत्र. ३४१| ४६१ कलंकलीभाव-कदर्यमानता। प्रज्ञा० १०८1 उत्त० १८३ | कलकलिंता-कलकलायमानाः-कोलाहलबोलं कुर्वाणाः। आचा० ११७ प्रश्न.५० मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [32] "आगम-सागर-कोषः" [२]

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