Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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प्रस्तावः। उत्त० ४८६। मृत्युः। आचा० १२२। अवसरादिः। | अभिसन्धितः कालो यैस्ते कालगृहीताः। आचा० १८४ भग०७७३। कलनं कालः, कलासमूहो वा कालः, तेण वा | कालग्गं-कालाग्रं-अधिकमासकः। यदिवाऽग्रशब्दः कारणभूतेन, दव्वादिचउक्कयं कलिज्झतीति कालः- परिमाण-वाचकस्तत्रातीतकालोऽनादिरनागतोऽनन्तः ज्ञायत इत्यर्थः। निशी० ५। कालविषयम्। बृह. २०१। । सर्वाद्धा वा। आचा० ३१८० निरयावलिकानां प्रथम-वर्गस्य प्रथममध्ययनम्। निर० | कालग्गहो-कालग्राही। व्यव. २५२ अ। ३। कल्यते-संख्यायतेऽ-सावनेन वा कलनं वा कला- कालचक्कं- कालचक्र। आव. २१७१ समूहो वेति कालः वर्तनापरा-परत्वादिलक्षणः। स्था. कालचारी-कालचारिणी-एतादृशी संयती। ५५ समयः। स्था० १९८१ स्था० २०१। अवस्थितिः। भग० | कालचारिश्रमणी-युक्तः। ओघ० ५७ ५३३। नारकादित्वेन स्थितिर्जीवानां सः।
कालच्छेदे-कालपर्यन्ते। ओघ० २१३। नारकादिभवेऽवस्थानं सः। स्था० २०११ सज्ञाकालः। कालण्णाण-कालज्ञानं
ओघ० १२२। स्वाध्यायकालः। शना। मरणम्। आव. सकलज्योतिःशास्त्रानुबन्धिज्ञानम्। जम्बू० २५८५ २७५। सुभिक्षदुर्भिक्षादिः कालः। आव० ८३७। प्रक्रमात् कालदोस-कालदोषः-अतीतादिकालव्यत्ययः। सूत्रस्य पतनप्रस्तावः। उत्त० ३३४। कालः। दिवसस्य
द्वात्रिंशद्दोषे एकविंशतितमः। आव० ३७४। अनुयो० प्रहरत्रयलक्षणः। भग० २९२। विमानविशेषः। सम० ३५) ર૬રા. आमलकल्पानगर्यां गृहपतिविशेषः। कालवतंसकविमाने | कालधम्मु-कालधर्मः-मरण। स्था. १४३। सिंहासनम्। ज्ञाता० २४७। मरणधर्मः। जम्बू. १५८ कालनिषीथं-कृष्णरजन्योः यत्र वा काले निषीथं दीर्घकालिकसंज्ञा। मरणम्। दशवै ९| विपा०८० व्याख्यायत इति। आचा०४०८१ क्षीयमा-णादिलक्षणः। दशवै० ११५। कुणिकराज्ञो कालपएसे-कालप्रदेश:-एकादिसमयः। प्रज्ञा० २०२ भिन्नमातको भ्राता। भग. ३१६। षष्ठो निधि-विशेषः। कालपक्ख- कृष्णपक्षः। आव० ३४९। जम्बू. २१५८1 गणितः। आव २९६।
कालपरियाए- मृत्युरवसरोऽत्रापि ग्लानावसरेऽसावेव कालकंखी-कालम्-अनुष्ठानप्रस्तावं कालत
काल-पर्याय इति। आचा० २८२। इत्येवंशीलः कालकांक्षी। उत्त० २६९।
कालपाले-धरणेन्द्रस्य प्रथमलोकपालः। स्था० १९७। कालक-विदयाप्रदानाय प्रशिष्यसकाशमागत
कालपोराणं-कृष्णपर्वणां उपरितनपत्रसमूहापेक्षया आचार्यविशेषः। आव० ५२३॥
हरिता-लवत्पिञ्जराणां। जीवा. ३५५१ कालकाचार्यः- गुणननिमित्तमनुयोगे दृष्टान्तः। बृह. | कालप्रत्युपेक्षणा-उचितानुष्ठानकरणार्थं कालविशेषस्य ३९ । प्रवचनप्रत्यनीकशासकः। बृह० १५६ अ, बृह. । पर्यालोचना। स्था० ३६१ १५५ ।
कालप्रायश्चित्तं-त्रिविधप्रायश्चित्ते तृतीयम्। बृह. ४८ कालकाल-अभीष्टवस्त्ववाप्त्यवसरः, कालो, मरणं।।
आग मरणक्रि-यायाः कलनं काल इत्यर्थः। दशवै० ९|| | कालभूमी-कालभूमिः-कालमण्डलाख्या भूमिः। आ० मरणक्रियाकलनं काल-कालः। आव. २५७। कालकूट-कालकूटनामकं विषम्। उत्त० ४७८१
कालभेदः-अतीतादिनिर्देशे प्राप्ते वर्तमानादिनिर्देशः। कालखमणो-कालक्षपणः-कालकाचार्यः। उत्त०१२७। स्था०४९६| कालगज्ज-कालकाचार्यः। निशी० ३०३ ।
कालभोइ-जो मज्झण्हे भुंजइ अणत्थमिए वा। निशी. कालगतिल्लतो-कालगतः। उत्त० १६०|
३८ आ| कालगय-कालगतः-मृतः। आव०६२९/
कालमण्डला- कालमूभिः। आव० ७८४१ कालगहिया-कालेन मृत्युना गृहीताः,
कालमरण- यस्मिन् काले मरणम्पवर्ण्यते क्रियते वा। पौनःपुन्यमरणभाज इत्यर्थः। धर्मचरणाय वा गृहीताः- | उत्त० २२९।
७८४१
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]

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