Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 26
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] ४६ कम्मणकारिया-कार्मणकारिणी। आव०५६१। कैरावतपञ्चकमहाविदेहपञ्चकलक्षणाः। नन्दी०१०२ कम्मणजोए-कुष्ठादिरोगहेतुः। ज्ञाता० १८८ कम्मभूमि-कर्मभूमिः-कृष्यादिकर्मस्थानभूता कम्मणा-कार्मणं। तथाविधद्रव्यसंयोगः। स्था० ३१४१ भरतादिका। प्रश्न. ९६। कम्मदव्व-कर्मद्रव्यं-कर्मद्रव्यपरिच्छेदकोऽवधिः। आव० | कम्मभूमो-कर्मभूमः-कर्मप्रधाना भूमिर्यस्य सः। जीवा. ३६। कर्मशरीरद्रव्यं। प्रज्ञा० ३०४। कम्मधम्मसंजोगो-कर्मधर्मसंयोगः। आव० ३८८1 कम्ममासओ-त्रयो निष्पावा निष्पन्नः-कर्ममाषकः। कम्मनरवइ-कर्मनरपतिः। ज्ञाता० २३४। अनुयो० १५५ कम्मपगडी-कर्मप्रकृतिः-प्रज्ञापनायां त्रयोविंशतितमं | कम्ममाहूय-काय-कर्मोपादाय। आचा० १५८ पदम्। भग०६३ कम्मयं- कर्मकम्-अनुष्ठानम्। उत्त० २९०। कार्मणंकम्मपट्ठवणसयं-कर्मप्रस्थापनादयर्थप्रतिपादनपरं शतं यद-दयात्कार्मणशरीरप्रायोग्यान् पगलानादाय कर्म-प्रस्थापनशतम्। भग० ९४२ कार्मणशरीर-रूपतया परिणमयति परिणमय्य च कम्मपयडी-उत्तराध्ययने त्रयत्रिंशत्तममध्ययनम्। जीवप्रदेशैः सह परम्परा-नुगमरूपतया सम्बन्धयति सम०६४। तत्कर्मणशरीरनाम। प्रज्ञा०४६९। कम्मपुरिसा- कर्माणि-महारम्भादिसम्पाद्यानि कम्मयणो-कम्मबलो। निशी० २७६-अ। नरकायुष्का-दीनीति पुरुषाः। स्था० ११३। | कम्मयर-कर्मकरः छगणपूजादयपनेता। जम्बू. १२२| कम्मप्पवादो-कर्मप्रवादः-पूर्वविशेषः। उत्त० १७४। कम्मया- कृषिवाणिज्यादिकर्मभ्यः सप्रभावा। राज. कम्मप्पवाय-कर्मप्रवादः-ज्ञानावरणीयादिकर्मणो ११६] निदाना-दिप्रवदनमिति। दशवे. १३। ज्ञानावरणादि कर्म | कम्मरय-अष्टप्रकारं कर्मरजः-तत्र प्रोच्यते तत्कर्मप्रवादमिति। सम० २६। कर्म जीवगुण्डनपरत्वात्कर्मैव रजः कर्मरजः। दशवै०१७ ज्ञानावरणीयादिक-मष्टप्रकारं तत्प्रकर्षण कम्मलेसा-कर्मलेश्या-कर्मस्थितिविधात प्रकृतिस्थित्यनभागप्रदेशादिभिर्भेदैः सप्रपञ्चं वदतीति तत्तद्विशिष्टपुद्गल-रूपा। उत्त० ६५२। कर्मप्रवादम्। नन्दी० २४१।। कमलेस्सं-कर्मणो योग्या लेश्या-कृष्णादिका कर्मणो कम्मप्पवायपुव्वं- कर्मप्रवादपूर्व-अष्टमपूर्वनाम। आव० वा लेश्या-लिश श्लेषणे' इतिवचनात् सम्बन्धः ३२११ कमलेश्या। भग०६५५ कम्मभूमगपलिभागी- कर्मभूमगाः-कर्मभूमिजातास्तेषां | कम्मलेस्सा-कर्मणः सकाशाद्या लेश्या-जीवपरिणतिः प्रति-भागः-सादृश्यं तदस्यास्तीति-कर्मभमगप्रतिभागी, | सा कर्मलेश्या भावलेश्येत्यर्थः। भग०६३१ कर्मभू-मगसदृश इत्यर्थः। प्रज्ञा० ४९११ कम्मविउसग्गो- ज्ञानावरणादिकर्मबन्धहेतुनां कम्मभूमगा-कर्म-कृषिवाणिज्जयादि मोक्षानुष्ठानं वा ज्ञानप्रत्यनी-कत्वादीनां त्यागः। भग. ९२७। कर्म-प्रधाना भूमिर्येषां ते कर्मभूमाः, कर्मभूमा एव | कम्मविगईए-कर्मणामशुभानां विगत्या-विगमेन कर्मभूमकाः। प्रज्ञा० ५०| जीवा०४६। स्थितिमा-श्रित्य। भग० ४५६) कम्मभूमा- कर्मभूमाः। उत्त० ७०० कर्म- | कम्मविवेगो-कर्मविवेकः कर्मनिर्जरा। आव० ८५२। कृषिवाणिज्यादि मोक्षानुष्ठानं वा कर्मप्रधाना भूमिर्येषां कम्मविसुद्धीए- प्रदेशापेक्षया। भग० ४५६) ते कर्मभूमाः। प्रज्ञा०५० कम्मविसोहीए-रसमाश्रित्य। भग०४५६) कम्मभूमि- कर्मभूमिः-कृष्यादिकर्मप्रधाना भूमिः | | कम्मवेदए-कर्मवेदकः-प्रज्ञापनायाः पञ्चविंशतितमं कर्म-भूमिः-भरतादिका पञ्चदशधा। स्था० ११५) पदम्। प्रज्ञा०६। कृषिवाणिज्य-तपःसंयमानुष्ठानादिकर्मप्रधाना भमयः | कम्मसंपया-कर्मसम्पत्, कर्म-क्रिया तस्याः सम्पत्कर्मभूमयो-भरतपञ्च सम्पन्नता, कर्मणा वा ज्ञानावरणादीनां सम्पत् मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [261 "आगम-सागर-कोषः" [२]

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