Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-२)
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कम्मंसे- कर्माशान्मूलप्रकृतीः। औप० ११३॥
सम्यगुपयोगरूपं, मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादककम्म-अनुदयावस्थकर्मपुद्गलसम्दायरूपं कर्म। भग० । षाययोगरूपं वा । सूत्र०७१। क्रिया, दशविधचक्रवाल ८। मदनोद्दीपको व्यापारः। भग० १३४। गमनादि। भग० | सामाचारीप्रभृतिरितिकर्तव्यता। उत्त०६६। यदानाचा३१११ ज्ञानावरणादि, क्रिया वा। दशवै०७०| वानलक्षणं। र्योपदेशजं सातिशयमनन्यसाधारणं गृह्यते भग० ४७७ क्रियत इति कर्म-क्रिया। उत्त. २४६। रक्षार्थं भारवहनकृषि-वाणिज्यादि। आव० ४०८। कार्मणकरणं। वसत्यादेः परिवेष्टनम्। उत्त०७१० क्रियते इति कर्म। बृह० १२३ अ। कृष्यादि। पिण्ड० १२९। अनावर्जकम्, आव० ३५ अनाचार्यकं सर्वकालिकं वा। आव० ३५। अप्रीत्युत्पादकम्। पिण्ड० १२९। कृषिवाणिज्यादि, नन्दी.१४४। मनोवाक्कायक्रियालक्षणः। उत्त०१८ मोक्षानुष्ठानं वा। प्रज्ञा० ५०| उत्क्षेपणावक्षेपणादि कर्मणाम्-सुखदुःखप्राप्तिपरिहारक्रियाणां
गमनादि वा। जम्बू. १३०| अनाचार्योपदेशजं कर्म। कायिकाधिकरणिकाप्रादोषि
जम्बू० १३६) कापारितापनिकाप्राणातिपातरूपाणां
कम्मआसीविसा-कर्मणा-क्रियया शापादिनोपघातकरकषिवाणिज्यादिरूपाणां वा। आचा० १२९। अनुष्ठानम्- णेनाशीविषाः-कर्माशीविषाः। भग० ३४१। ज्ञानावरणादि। उत्त० ३४८। ज्ञानावरणादि। उत्त० ३८४॥ कम्मए-कर्मणो जातं कर्मजम्। प्रज्ञा० २६८1 जीवा० १४। ज्ञानावरज्ञादि। ज्ञाता० २०५। जीवनोपायः। जम्बू. १३६| अष्टविधकर्मसमुदायनिष्पन्नमौदारिकादिशरीरनिबन्ध कृषिवाणिज्यादि। जम्बू० २५८१
नं च भवान्तरानुयायिकर्मणो विकारः कर्मैव वा यत्पुनर्विवाहप्रकरणादावुद्धरितं मोदकचूर्खादि तद् कार्मणम्। अनुयो० १९६। भूयोऽपि भिक्षाचराणां दानाय गडपाकदानादिना कम्मओ-कर्मतः-क्रियां जीवनवृत्तिम्मोदकादि कृतं तत्कर्म। पिण्ड० ७७। कृषिवाणिज्यादि। बाह्याभ्यन्तरभोजआव० १२९। उत्क्षेपणापक्षेपणादि। भग० ५७।
नीयवस्तुप्राप्तिनिमित्तभूतामाश्रित्येत्यर्थः। उपा०९। भ्रमणादिक्रिया। स्था० २३। अनाचार्यकं कादाचित्कं वा। | कम्मकडा-नामकर्मनिर्वतिता, अथवा कर्मभग० १७३। स्था० २८३। कृष्याद्यानाचार्यकम्। स्था० कमनोद्दीपको व्यापारस्तत्कृतं यस्यां सा कर्मकृता। भग. ३०४। उद्देशकस्य-विभागस्य द्वितीयप्रकारः। बृह० ८३। १३४ कार्मणकरणं। बृह. १२३ अ। अष्टमपूर्वः। स्था० १९९। कम्मकर-किंकरादन्यथाविधाः कर्मकराः। जम्बू० २६३। अक्षरलेखनादि-क्रिया। प्रश्न. ११८ अन्तर्यत्र
कर्मकरः। उत्त. २२५ कर्मकरः। आव. १९४१ नियतसधादिपरिकर्म्यते। प्रश्न. १२७। लौकिको व्यवहारः। कालमादेशकारी। प्रश्न. ३८1 नायकाश्रितः सुर्य. १६९। उत्क्षेपणावक्षेप-णादि। सूर्य. २८६)
कश्चिद्धोगपरः। सूत्र० ३३१ वन्दनादिलक्षणम्। सूर्य० २९६। प्रज्ञा
कम्मकारो-कर्मकारः लोहारादिः। जीवा. २८। लोहकारो। पनायास्त्रयोविंशतितमं पदम्। प्रज्ञा०६। कारकवाचकः निशी० २१४ आ। कर्तुरीप्सिततम, ज्ञानावरणीयादि वा, क्रिया वा। आव. कम्मगंथि- कर्मग्रन्थिः-अतिदुर्भेदघातिकर्मरूपः। उत्त. ५११। ज्ञानावरणीयादि। आव०७८२ आरेचनभ्रमणादि। ५९४१ प्रज्ञा०४६३। हस्तकर्म, सावदयानुष्ठानं वा। सूत्र. १८० कम्मगंठिय-कार्मग्रन्थिकः। प्रज्ञा० ३१९, ४२४। पृथिव्याद्यारम्भक्रिया। प्रश्न. १२७। कृष्यादिव्यापारः। | कम्मगुरू- कर्मगुरुः कर्मणा गुरुरिव गुरुः प्रश्न० ११७। कृष्यादिकर्म। उत्त० २०९। अनुष्ठानम्। अधोनरकगामितया। उत्त० २७५। आव० ४७८अनुष्ठानं-ज्ञानप्रशंसादि। उत्त० १२७ कम्मग्गहणं-कर्मग्रहणं, आधाकर्मिकग्रहणम्। पिण्ड. कुत्सिता-नुष्ठानम्। उत्त० २०८ अनाचार्यकं
८६ कादाचित्कं वा। आव०४९५। कषिवाणिज्यादि
कम्मचिट्ठ-कर्मचेष्टा-क्रियन्त इति कर्माणि-अग्नौ मोक्षानुष्ठानं वा। जीवा० ४६। अनुष्ठानं,
समित्प्रक्षे–पणादीनि तद्विषया चेष्टा। उत्त० २६७)
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [२]

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