Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] कब्बडमारी-मारीविशेषः। भग० १९७ कमती-क्रमते-घटते। सम० १३९। कब्बरूवं-नगरविशेषः। भग. १९३। कमभिण्णं-क्रमभिन्नं, यत्र यथासङ्ख्यमनुदेशो न कब्बडाति-कुनगराणि। स्था०८६) क्रियते। सूत्रस्य द्वात्रिंशद्दोषे त्रयोदशः। आव० ३७५। कब्बडिया-अत्ताणा। निशी० ११ अ। कमभिन्न-क्रमभिन्नं-यत्र क्रमो नाराध्यते। सूत्रस्य कब्बड्ढ- बालकः। गच्छा० द्वात्रिंशद्दोषे त्रयोदशः। अन्यो० २६२ क्रमेण हि कब्बालभयते-कब्बाडमृतकः-क्षितिश्वानक ओडादिः, तिविहमित्येतन्न करोम्या-दिना विवृत्य यस्य स्वं कार्प्यते द्विहस्ता त्रिहस्ता वा त्वया भूमिः ततस्त्रिविधेनेति विवरणीयं भवतीति, अस्य च खनितव्यै-तावत्ते धनं दास्यामीत्येवं नियम्येति। स्था० | क्रमभिन्नस्यानुयोगोऽयं यथाक्रमविवरणे हि २०३। यथासङ्ख्यदोषः स्यादिति तत्परिहारार्थं क्रमभेदः। स्था. कब्बुरए- कर्बुरकः-अष्टाशीत्यां महाग्रहे षोडशः। जम्बू. ५३४१ कमल- नागपुरनगरे गृहपतिविशेषः। ज्ञाता० २५२। कभल्लं- कपालं, घटादिकर्परम्। अनुत्त० ५। कपालम्। हरिण-विशेषः। भग० १२७। राज० १४४। औप० २६। उपा०२११ रविबो-ध्यम्। जम्बू. ११५। सूर्यबोध्यम्। ज्ञाता० १६८१ कम-अवतारं। निशी. १०३ अ। कमला-राजधान्यां कमलावतंसकभवने कमंडलु-भाजनविशेषः। निशी० ३४७ आ। सिंहासनविशेषः। ज्ञाता०२५२। प्रश्न. ८४ कम-भगवत्यां त्रयोदशशतेऽष्टमोद्देशकः कमलदलो- शूलिहतश्चौरो नमस्काराद्यक्षः। भक्त। कर्मप्रकृतिप्ररूपणा-र्थकः। भग० ५९६। क्रम लङ्घय। कमलप्पभा-कालस्य द्वितीयाऽग्रमहिषी। स्था० २०४। प्रश्न. २०| क्रमः-यतिवि-हित आचारः। उत्त०५०५। भग० ५०४॥ धर्मकथायाः पञ्चमवर्गस्य क्रमपरं तु द्रव्यादिचतुर्द्धा। आचा० ४१५। पाकस्य द्वितीयमध्ययनम्। ज्ञाता०२५२ पेयादिपरिपाट्या प्रदानं क्रमः। आव० ८३७। क्रमः। कमलसिरी-महाबलस्य राज्ञी। ज्ञाता० १२१। कमलगृहआचा०४१५१ पतेर्भार्या। ज्ञाता०२५२ कमइ-कामति-घटते। पिण्ड०७९| कमलवडेंसए-कमलाराजधान्यां भवनम्। ज्ञाता० २४२। कमजोग- क्रमयोगः परिपाटीव्यापारः। दशवै. १६३। | कमला- कालस्य प्रथमाऽग्रमहिषी। भग० ५०४। स्था० कमढं-खरंटो उ जो मलो तं कमढं भण्णति। निशी. १९० २०४॥ धर्मकथायाः पञ्चमवर्गस्य प्रथममध्ययनम्। आ। कमढं-पात्रविशेषः। व्यव. २१८ आ। ज्ञाता० २५२। कमलकमलश्रियोः दारिका। ज्ञाता० २५२। कमढगं-कमढकं-पात्रविशेषः। व्यव. ३२४ आ। कमलामेलं- कमलामेलं, कमलीपीडं वा। जम्बू. २३४| साधुजनप्रसिद्धं भाजनम्। निशी० ६१ अ। करोडगागारं। | कमलामेला-द्वारिकायामन्यस्य राज्ञः दुहिता। आव. निशी० ७१ आ। उड्डाहपच्छायणं। निशी० १११ आ। । ९४। दवारिकायां दारिका। बृह. ३० अ। सबाह्याभ्यन्तरं शुक्ललेपं कांस्य करोटकाकारं कमलावई-कमलावती, इषकारनपतिमहादेवी। उत्त. भाजनम्। बृह. २९० अ। कमढकं-आर्यि-कापात्रम्। ३९५ ओघ. २०९। पात्रम्। ओघ०४४, ८२। कमसो-क्रमतः। उत्त०७ कमढयं-अट्ठगमयं कंसभायणसंठाणसंठियं। निशी. १७९ कमा-धरणस्य प्रथमाग्रमहिषी। ज्ञाता० २५१। कमिज्जणा-मुंडनादि। निशी. १३७ आ। कमणिया-क्रमणिका-उपानहः। तलिका। बृह. १०१ । कमेति-क्रमते-उत्सहते। बृह. १६४ आ। कमणी-पादप्रमाणं चर्म। बृह. २२२ आ। कम्बा- लता। प्रश्न. १६४। कमणीउ-उपानहौ। निशी. १३७ अ। कम्मंता-कर्याणि। कर्मकराः। उत्त. २६३ कमणीओ-उपानहौ। निशी. १८ अ। कम्मंसि-सत्कर्माणि। उत्त० ५९७, १८८1 आ। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [24] "आगम-सागर-कोषः" [२]

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200