Book Title: Agam Sagar Kosh Part 02
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-२) [Type text] कण्णियारकुसुमं- कर्णिकारकुसुमम्, कण्हसप्प-कृष्णसर्पः। दर्वीकर-अहिभेदविशेषः। दीव काञ्चनारककुसुमम्। प्रज्ञा० ३६१। दर्वी-फणा, तत्करणशीलः। जीवा० ३९| प्रज्ञा०४६। राहोः कण्णिल्लं-पदैकदेशे पदसमुदायोपचारात् नवमं नाम। भग० १७५ कण्णिलायनम्, शतभिषग्गोत्रम्। जम्बू. ५०० कण्हसिरी-कृष्णश्रीः। दत्तगाथापतिभार्या। विपा० ८२ कण्ह- कृष्णः, परिव्राजकविशेषः। औप० ९१। नवमो वासु- | कण्हसूरवल्ली-वल्लीविशेषः। प्रज्ञा० ३२॥ देवः। आव. १५६| साधारणबादरवनस्पतिकायविशेषः। | कण्हा-कृष्णा। अन्तकृद्दशानामष्टमवर्गस्य प्रज्ञा० ३४। बलदेववासुदेवयोर्धर्माचार्यनाम। सम० १५३ चतुर्थमध्ययनम्। अन्तः २५ कण्हा (कण्णा)-कृष्णा वनस्पतिविशेषः। भग ८०४१ कृष्णः- | (कन्या)। आभीर-विषये नदीविशेषः। आव० ४१२।। पुरुषसिंहधर्माचार्यः। आव. १६३| वसुदेवपुत्रः। दशवै. वासवदत्तराज्ञी। विपा.९५धर्मकथाया दशमवर्गस्य ३६। हरितविशेषः। प्रज्ञा० ३३। कन्दविशेषः। उत्त०६९१। प्रथममध्ययनम्। ज्ञाता० २५३। कृष्णा-आर्याविशेषः। द्वारकायां वासुदेवः। अन्त० २। ज्ञाता० १००| अन्त०२८। ईशानेन्द्रस्य प्रथमाऽग्रमहिषी। भग० ५०५ वासुदेवनाम। निर० ३९। कृष्णा-योगद्वारविवरणेऽचल-पुरासन्ननदीविशेषः। कण्हकंद-कृष्णकन्दः। अनन्तकायवनस्पतिविशेषः। पिण्ड०१४४ भग० ३०० प्रज्ञा० ३६४१ कण्हाते-उत्तरपूर्वरतिकरपर्वते ईशानेन्द्रस्याऽग्रमहिष्या कण्हकणवीरए-कृष्णकणवीरः। वृक्षविशेषः। प्रज्ञा० ३६० राज-धानी। स्था० २३१॥ कण्हगोमी- कृष्णगोमी, कर्णशृगाली। व्यव० १८७।। कण्हासोए- कृष्णाशोकः। वृक्षविशेषः। प्रज्ञा० ३६० कण्हदल-वनस्पतिविशेषः। भग० ८०२। कण्हुइ-कुत्रचिद् देशे काले वा। उत्त० १४०| कण्हपक्खिय-कृष्णपाक्षिकः। अधिकतरसंसारभाग | कण्हुई-कस्मिंश्चित् सूत्रादौ वस्तुनि वा। उत्त० १२६। जीवः। प्रज्ञा० ११७ कण्हुहरे- कण्हु-कस्यार्थं हरिष्यामि इत्येवमध्यवसायी। कण्हपरिव्वायगा-कृष्णपरिव्राजकाः। परिव्राजकविशेषः। | उत्त० २७४१ नारायणभक्तिका इति केचित्। औप. ९१| कण्हे- निरयावलिकानां प्रथमवर्गस्य चतुर्थमध्ययनम्। कण्हफसिताओ-कर्णपृषतः। निशी०६०आ। निर०३। कण्हबंधुजीवए- कृष्णबन्धुजीवः। वृक्षविशेषः। प्रज्ञा० कण्हो-बंभवत्त। कण्हो-क्रोधजयी। मरण। ३६० कतं- कृतं ममानेन तत्प्रयोजनमिति प्रत्युपकारार्थं यद्दानं कण्हभूमी-कृष्णभूमिः। आव० १०१। तत् कृतम् । स्था० ४९६ कण्हराई-ईशानेन्द्रस्य दवितीयाऽग्रमहिषी। भग. ५०५। । | कतकज्जो-कृतकार्यः। निष्ठिताखिलप्रयोजनः। सूर्य कृष्णपुद्गलरेखा। भग० २७१। २९ कण्हराती- कृष्णराजी, कृष्णपद्गलपङ्क्तिरूपत्वात्। | कतणासी- कृतनाशिनः, अकृतज्ञाः। ओघ०७२। स्था० ४३२॥ धर्मकथाया दशमवर्गस्य कतपुण्णो-कृतपुण्यः, राजगृहे धनावहपुत्रः। आव० ३५३। द्वितीयमध्ययनम्। ज्ञाता० २५३। कतमाला- एकोरुकदवीपे वृक्षविशेषः। जीवा. १४५ कण्हरातीते- उत्तरपूर्वरतिकरपर्वते कता-कदा। आव० ३४२। ईशानेन्द्रस्याग्रमहिष्या राजधानी। स्था० २३११ कतिकट्ठा-कतिकाष्ठा, किंप्रमाणा। सूर्य०७) कण्हलेस्सा-कृष्णद्रव्यात्मिका लेश्या, कृष्णद्रव्यजनिता कतिविया-कइविका-कलाचिका। ज्ञाता०४४। वा लेश्या कृष्णलेश्या। प्रज्ञा० ३४४। कतिसंचिता- कति–कतिसङ्ख्याताः, सङ्ख्याता एकैककण्हवडेंसय-कृष्णावतंसकम्। ईशानकल्पे समये ये उत्पन्नाः सन्तः सञ्चिताःविमानविशेषः। ज्ञाता०२५३। कत्युत्पत्तिसाधाद् बुद्ध्या राशीकृतास्ते कण्हवेला-आभीरविसए नदी। निशी० १०२ आ। कतिसञ्चिताः। स्था० १०५ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [19] "आगम-सागर-कोषः" [२]

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 ... 200