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इस चातुर्मासमें पहले के शेष रहे लोकप्रकाश ग्रन्यको व्याख्यानमें सम्पूर्ण किया। पर्युषणके पश्चात् वादीवेताल शान्तिसूरिस्त उत्सराध्ययनकी टीका प्रारम्भ की जिस से लोगोंमें अत्यन्त धर्मभावना की जागृती हुई । चातुर्मासकी समाप्ति पर वहां से विहार कर पानसर, तारंगा, महेसाणा आदि नगरोंमें होते हुए उंझा पधारे और संघकी विनतीसे सम्वत् १९७९का चातुर्मास उंझा में किया । तत्पश्चात् वहां से विहार कर उनावा, देउ, महेसाणा, पानसर होते हुए पूज्य गुरुमहाराजके साथ अहमदाबाद पधारे
और सम्वत् १९८० का चातुर्मास पंन्यासजी महारामने महमदाबादमें संवेगीयोंके उपाश्रयमें किया और शेष रही उत्तराध्ययमकी टीकाको सम्पूर्ण किया । उस समय शेठ साकलचन्द मोहनलालमाई ने पूज्य गुरुमहाराजके साथ पंन्यासनी महाराजका भी. चातुर्मास बदलाया और उपाश्रयमें नंगडाकी रचना कर अट्ठाई महोत्सव किया । फिर शिवगंजनिवासी शेठ फोजमल बालानी की बिनति होमेसे महारामने पूज्य गुरुमहाराजकी आज्ञा लेकर विहार करते हुए आबू गिरिरानकी यात्रा कर शिवगंजमें पदार्पण किया । वहां पोसमहिने के कृष्णपक्षमें शा. फोनमल बालाजीकी तरफसे उपधानतपकी क्रिया प्रारंभ कराई जिसमें श्रावक-श्राचिकाये सब मिला कर करीब २३४ पुरुष-स्त्रियोंने लाभ उठाया और माल महोत्सवके प्रसंग पर करीब पांच हनार पुरुष-स्त्री एकत्र हुए। उपधानतपकी समाप्ति पर पंन्यासश्री खिवान्दी होकर तरूलगड पधारे और संघके आग्रहसे सम्बत् १९८१का चातुर्मास कहींपर किया । इस चातुर्मासमें जवानमल . कस्तुरचन्दकी तरफसे उपवान तपकी क्रिया शुरू हुई इस में श्रावक-श्राविका कुल मिला कर करिब ३६५ स्त्री-पुरुषोंने लाभ उठाया और मालोत्सव के प्रसन