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नव पदार्थ
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५४. पुद्गल से जो वस्तुएं बनती हैं, वे सभी विनाश को प्राप्त हो जाती हैं। इनको भगवान ने भाव पुद्गल कहा है। द्रव्य पुद्गल तो ज्यों-के-त्यों रहते हैं।
५५. आठ कर्म और पांचों शरीर अशाश्वत हैं क्योंकि ये निष्पन्न हुए हैं। इसीलिए इनको भाव पुद्गल कहा गया है। द्रव्य पुद्गल निष्पन्न नहीं किया जा सकता।
५६. छाया, धूप, प्रभा, कान्ति इन सबको भाव पुद्गल जानें । इसी प्रकार अंधकार और उद्योत इनको भी भाव पुद्गल पहचानें।
५७. लघु, गुरु, स्निग्ध और रुक्ष ये चार स्पर्श, गोल, वृत्त आदि पांच संस्थान तथा घट, नगाड़ा और वस्त्र आदि इन सबको भाव पुद्गल जानें।
५८. घृत, गुड़ आदि दसों विकृतियां, भोजन आदि सर्व वस्तुएं तथा नाना प्रकार के शस्त्र इन सबको भाव पुद्गल जानें।
५९. सैंकड़ों मन पुद्गल जल गए, परन्तु द्रव्य पुद्गल तो जरा भी नहीं जला। उत्पन्न और विनष्ट होने वाले भाव पुद्गल होते हैं।
६०. सैंकड़ों मन पुद्गल उत्पन्न हुए, परन्तु द्रव्य पुद्गल किंचित् भी उत्पन्न नहीं हुआ। जो उत्पन्न हुए हैं वे ही विनाश को प्राप्त होंगे परन्तु द्रव्य पुद्गल का विनाश नहीं होगा।
६१. द्रव्य का तीन ही काल में कभी विनाश नहीं होता। जो उत्पन्न और विनष्ट होते हैं, वे भाव हैं, वे पुद्गल के पर्याय हैं।
६२. उत्तराध्ययन सूत्र के छत्तीसवें अध्ययन में द्रव्य और भाव के न्याय से पुद्गल को शाश्वत और अशाश्वत कहा गया है। उसमें कुछ भी शंका न करें।
६३. अजीव द्रव्य को अवलक्षित कराने के लिए श्रीजीद्वार (नाथद्वारा) में सं. १८५५, वैशाख कृष्णा पंचमी, बुधवार को यह जोड़ सम्पूर्ण की है।