________________
नव पदार्थ
११. अवधिदर्शनावरणीय कर्म के उदय से जीव अवधिदर्शन को नहीं पाता तथा केवलदर्शनावरणीय कर्म-प्रसंग से केवलदर्शन प्रकट नहीं होता ।
७५
१२-१३. जो सोया हुआ प्राणी जगाने पर सहज जागता है उसकी नींद 'निद्रा' है, 'निद्रा-निद्रा' के उदय से जीव कठिनाई से जागता है। बैठे-बैठे, खड़े-खड़े जीव को नींद आती है उसका नाम 'प्रचला' है । जिस निद्रा के उदय से जीव को चलते-फिरते नींद आती है, वह 'प्रचलाप्रचला' है। पांचवी निद्रा 'स्त्यानर्द्धि' है। इससे जीव बिलकुल दब जाता है । यह निद्रा बड़ी कठिन - गाढ़ होती है ।
१४. उपर्युक्त पांच निद्राओं तथा चक्षु, अचक्षु, अवधि तथा केवल इन चार दर्शनावरणीय कर्मों से जीव बिलकुल अंधा हो जाता है उसे बिलकुल दिखाई नहीं देता । देखने की अपेक्षा से दर्शनावरणीय कर्म पूरा अंधेरा कर देता है ।
१५. दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम होने से जीव को चक्षु, अचक्षु और अवधि ये तीन क्षयोपशम दर्शन प्राप्त होते हैं। इस कर्म के सम्पूर्ण क्षय से केवलदर्शनरूपी दीपक घट में प्रकट होता है ।
१६. तीसरा घनघात्य कर्म मोहनीय कर्म है। उसके उदय से जीव मतवाला हो जाता है। इस कर्म के उदय से जीव सच्ची श्रद्धा के विषय में मूढ़ और मिथ्यात्वी होता है तथा उसके बुरे कार्यों का परिहार नहीं होता ।
१७. जिन भगवान ने मोहनीय कर्म के दो भेद कहे हैं दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय । यह मोहनीय कर्म सम्यक्त्व और चारित्र जीव के इन दोनों स्वाभाविक गुणों को बिगाड़ता है।
१८. जब दर्शनमोहनीय कर्म का उदय होता है तब शुद्ध सम्यक्त्वी जीव भी मिथ्यात्वी हो जाता है । जब चारित्रमोहनीय कर्म उदय में होता है तब जीव चारित्र खोकर छह प्रकार के जीवों का हिंसक बन जाता है 1