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दोहा
१. जीव हिंसा अति बुरी है। उसमें अनेक अवगुण हैं। जो दया धर्मी है, उसमें अनेक गुण हैं, उन्हें विवेक पूर्वक सुनें।
ढाल:९
दया धर्म जिनेश्वर देव की वाणी है। १. दया भगवती अत्यन्त सुखदाई है। यह मोक्षपुरी की साई है। दसवां अंग प्रश्रव्याकरण सूत्र (श्रु. २, अ. १, सूत्र १०७) में दया के ६० नाम बताए हैं।
२. दया का पूजनीय, मांगलिक श्रेष्ट नाम है भगवती। जो भव्य प्राणी इसकी शरण में आए हैं, उनकी मुक्ति निकट है।
३. तीन करण, तीन योग से षट्कायिक जीवों की हिंसा नहीं करना, जिनेश्वर देव ने इसे दया कहा है। उस दया-भगवती के अनन्तगुण हैं। उन्हें पूर्णतः कैसे कहा जा सकता है।
४. तीन करण, तीन योग से षट्कायिक जीवों को भयभीत नहीं करना, उसे भगवान ने अभय दान कहा है। यह भी दया का एक नाम है।
५. तीन करण, तीन योग से षट्कायिक जीवों को न मारने का शुद्ध मन से संकल्प करना, इसे भगवान ने पूर्ण दया बताया है। इससे पाप आगमन के द्वार रूक जाते हैं।