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दूहा
१. चोवीसमा जिनवर हुआ, महावीर विख्यात।
त्यांरी पहली वांणी निरफल गई, ते हुवो अछेरो इचरज वात॥
२. जंभीक गांम ने बाहिरें, सांम नामा करसणी रो खेत।
तिहां साल नामा विरख थों, गहर गंभीर पांन समेत॥
३. तिण साल विरख हेठे आवीया, भगवंत श्री विरधमांन।
वेंसाख सुदि दशम दिने, उपनो केवल ग्यांन॥
४. केवल महोछव करवा भणी, तिहां देवता आया अनेक।
पिण मिनखां ने ठीक पड़ी नही, तिणसं मिनख न आयो एक॥
५. देवता आगें वांणी वागरी, थित साचववा कांम।
कोइ साध श्रावक हुवों नही, तिणसू वांणी निरफल गई आंम॥
६.
जो धन थकी धर्म नीपजें, ओ देवता पिण धर्म करंत। वीर वाणी सफली करे, मन माहे पिण हरष धरंत॥
७.
वरत पचखांण न हुवें देवता थकी, धन सूं पिण धर्म न थाय। तिणसूं वीर वांणी निरफल गई, तिणरो न्याय सुणों चित ल्याय॥
ढाल : १२
(लय - जीव मोह अणुकंपा न आणि....)
__ भव करजों परख जिण धर्म री॥ १. जिन धर्म हुवें सोनइया दीया, तो देवता देता हाथोहाथ जी।
पूरत मनोरथ मन तणा, वीर वांणी निरफल न गमात जी।