Book Title: Acharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 351
________________ अनुकम्पा री चौपई ३४१ १२. यदि सावद्यदान में और असंयति को बचाने में धर्म होता तो निश्चित ही सम्यग् दृष्टि देवता उस धर्म को करके अपने कर्म काटते। १३. इस सावध धर्म से यदि कर्म कटते तो ऐसे अनेक कार्य हैं। उनमें से कुछ कार्यों को मैं प्रगट करता हूं। विवेक जगाकर सुनें। १४. समस्त द्वीप समुद्रों में मच्छ गलागल लग रही है। बड़ा मत्स्य छोटे मत्स्य को खा रहा है और उससे बड़ा उसे ही खा रहा है। १५. यदि एक देवता उद्यम करे तो एक दिन में अनेक जीवों को बचा देता है। धर्म हो तो उस कार्य में वह विलम्ब नहीं करता। इतना तो देवता में विवेक है ही। १६. जीव बचाने में यदि अभयदान होता है तो वह बहुतों को अभयदान दे देता। जीवों को बचाने में यदि धर्म जानता तो वह देव योनि में भी यह लाभ लेता। १७. एक दिन में लाखों-करोड़ों एवं अगणित मत्स्यों को बचाया जा सकता है। यदि इसमें जिनभाषित धर्म होता तो देवता मत्स्यों को अवश्य बचाते। १८. यदि मत्स्य के मुंह से मत्स्य को छुड़ाने में उसके अन्तराय लगे तो अचित्त मत्स्य को पैदाकर के उसको भी खिला देते। १९. यदि मत्स्यों को बचाने में और उन्हें पोषण देने में धर्म होता तो वह धर्म तो देवता से भी संभव था। वह ऐसा करके कर्म काट लेता। २०. यदि धर्म होता तो देवता असंख्य मत्स्यों को बचाता और असंख्य मत्स्यों का पोषण करता। इस काम में वह आलस्य भी नहीं करता। २१. पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु इनमें असंख्य जीव कहे गए हैं। वनस्पति में अनंत जीव होते हैं। उनको भी देवता बचा लेता।

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