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अनुकम्पा री चौपई
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२. हीरा, माणक एवं पन्ना आदि रत्न देवता स्वेच्छा से देते । भगवान की वाणी को सफलकर के देवता भी लाभ उठाते ।
३. यदि धन देने से जिनभाषित धर्म होता तो देवता खुले हाथों धन देते। ऐसा करने से भगवान की वाणी सफल होती तो उस समय यह अछेरा (आश्चर्य) नहीं होता ।
४. धन-धान्य आदि लोगों को देना, यह तो निश्चित ही सावद्य दान है। इसमें राग का धर्म नहीं है, यह स्वयं भगवान ने कहा है ।
५. यदि जीव बचाने से जिनधर्म होता हो तो वह देवताओं के लिए बहुत आसान था। अनंत जीवों को बचाकर भगवान की वाणी सफल कर देते ।
६. असंख्य सम्यग् दृष्टि देव हैं। एक-एक देव अनंत जीवों को बचा लेता । यदि उसमें धर्म होता तो भगवान की वाणी को सफल करने में थोड़ा भी विलम्ब नहीं करते।
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७. साधु और श्रावक का धर्म व्रत में है । वे जीव - हिंसा का प्रत्याख्यान करते हैं। यह धर्म देवताओं से नहीं होता इसलिए भगवान की वाणी निष्फल गई।
८. जीवों को जीवित रखने में संसार का उपकार होता है। इससे भगवान की वाणी सफल नहीं होती। इसमें जरा भी धर्म का अंश नहीं होता ।
९. असंयति को जीवित रखने में और असंयति को दान देने में यदि भगवान की वाणी सफल होती तो देवों के लिए यह बहुत ही आसान काम था ।
१०. कुपात्र जीवों को बचाना और कुपात्र को दान देना - यह संसार का सावद्य कर्तव्य है, ऐसा भगवान ने कहा है
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११. उत्तराध्ययन के अट्ठाईसवें अध्ययन में मोक्ष के चार मार्ग बताए हैं। शेष सब काम संसार के हैं और उनमें सावद्य योग का व्यापार है ।