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अनुकम्पा री चौपई
३५१ ६२. असंयति जीवों के जीने में अंशमात्र भी धर्म नहीं है और उन जीवों को जो दान दिया जाता है वह भी साक्षात् सावध है।
६३. दान देना और जीव बचाना ये दोनों ही कार्य देवताओं के लिए आसान है। ऐसा करने में धर्म होता तो देवता भी प्रधान-पंचमगति (मोक्ष) प्राप्त कर लेते।
६४. सं १८५७, कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी शुक्रवार के दिन जीव बचाना और सावद्य दान-इन दोनों की पहचान पुर शहर में बताई।