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दोहा
१. शासन अधिनायक भगवान महावीर प्रभु और गणधर गौतम स्वामी को प्रणाम करता हूं। उन महापुरूषों के स्मरण से आत्मिक कार्य सिद्ध होते हैं।
२. भगवान श्री महावीर ने गृहस्थ जीवन को छोड़कर संयम स्वीकार किया। भगवान बारह वर्ष और तेरह पक्ष तक छद्मस्थ रहे।
३. भगवान ने गोशालक को अपना शिष्य बनाया। वह वास्तव में ही अयोग्य था। छद्मस्थता के कारण भगवान को राग भाव आया।
४. छद्मस्थ तीर्थंकर साधु अवस्था में दीक्षा देकर किसी को अपना शिष्य नहीं बनाते । वे धर्म कथा (प्रवचन) भी नहीं करते। स्थानांग के नवमें स्थान के अर्थ में यह उल्लेख हैं।
५. बारह वर्ष और तेरह पक्ष में भगवान ने किसी को शिष्य नहीं बनाया। केवल एक अयोग्य गोशालक को शिष्य बनाया। यह न टल सकने वाली भवितव्यता थी।
६. तीर्थंकरों के साथ जो दीक्षा लेते हैं, उन्हें तीर्थंकर दीक्षा देते हैं, फिर जब तक वे केवली नहीं बन जाते तब तक किसी को दीक्षा नहीं देते।
७. भगवान श्री महावीर को छद्मस्थ स्वभाव के कारण मोह आया और उन्होंने गोशालक को बचाया। विवेक शून्य लोग इस न्याय को नहीं जानते।
८. गोशालक. को भगवान महावीर ने बचाया। उसमें मूर्ख व्यक्ति धर्म की स्थापना करते हैं। शून्यचित्त होकर बकवास करते हैं। वे अज्ञानी भ्रम से भ्रमित हो गए हैं।