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अनुकम्पा री चौपई
३३३ ४०. किसी ने किसी जीव को प्रयत्न करके बचाया और किसी ने किसी जीव को जन्म देकर बड़ा किया। यदि धर्म होगा तो दोनों को होगा। यदि नुकसान होगा तो दोनों को होगा।
४१. बचाने वाले की अपेक्षा तो पैदा करने वाला प्रत्यक्ष ही बड़ा उपकारी है। इन बातों का निर्णय किए बिना ही धर्म कहते हैं, उनका अभिमत तो एकांत बुरा है।
४२. बचाने वाला और पैदा करने वाला ये दोनों तो संसार के उपकारी हैं। ऐसे जो उपकार और प्रत्युपकार करते हैं, उनमें किंचित भी केवली प्ररूपित धर्म नहीं है।
४३. जीव को जीव बचाता है तो उससे उसका राग बंधन हो जाता है। परलोक में यदि वह जीव कहीं मिल जाता है तो उसे देखते ही स्नेह जागृत हो जाता है।
४४. जीव को जीव मारता है, उससे उसके प्रति द्वेष का बंधन हो जाता है। परलोक में यदि वह कहीं मिल जाता है तो देखते ही उसके प्रति द्वेष जागृत हो जाता है।
४५. मित्र से मित्रता और शत्रु से शत्रुता भवान्तर में चलती जाती है। ये तो राग-द्वेष रूप कर्मों के प्रपंच हैं। जिनेश्वर देव के धर्म में यह नहीं आता।
४६. कोई व्यक्ति अनुकंपा करके किसी का घर मंडाता (विवाह कराता) है और कोई किसी के बनते घर को नष्ट कर देता है। यह तो प्रत्यक्ष ही राग और द्वेष है। जो आगे तक साथ चलते जाते हैं।
४७. कोई किसी के काम भोग की वृद्धि करता है और कोई किसी के काम भोग में अन्तराय देता है। यह भी प्रत्यक्ष राग और द्वेष है। जो आगे तक चलते जाते
४८. कोई किसी का खोया हुआ धन और स्त्री बता देता है। कोई लोगों को लाभ हानि बताता है। यह राग भाव भी आगे तक चलता जाता है।