Book Title: Acharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 341
________________ अनुकम्पा री चौपई ३३१ ३२. दो इंद्र कोणिक को सहयोग करने आए और उसे सुखी कर दिया । एक करोड़ अस्सी लाख मनुष्यों को मारकर कोणिक का काम सुधार दिया। यह उपकार सांसारिक है। ३३. किसी एक जीव ने दूसरे जीव को अनंत बार बचाया है और उस जीव ने भी उसे अनंत बार बचाया है। ये सांसारिक उपकार परस्पर अनेक बार किए, परन्तु इनसे जीव का कोई कार्य सिद्ध नहीं हुआ, यह उपकार सांसारिक है। ३४. हांती न्योते परस्पर दिए जाते हैं। लड्डू, खोपरे परस्पर दिए जाते हैं। अथवा कोई अपनी ओर से (वापिस ) भी देता है। इस प्रकार संसार के अनेक उपकार हैं, परन्तु यह उपकार सांसारिक है। ३५. सांसारिक उपकार जिस जीव के प्रति किया जाता है, कदाचित् वह भी प्रत्युपकार करता है । ये पारस्परिक उपकार तो एक-एक जीव से अनंतीबार किए जा चुके हैं। यह सिद्धान्त भी जिनेश्वर देव ने बताया है। ३६. संसार के उपकार सभी फीके - नीरस होते हैं। वे तो थोड़े में ही नष्ट हो जाते हैं। उन सांसारिक फीके उपकारों से कोई मुक्ति सुख को नहीं पा सकता । 1 ३७. संसार के उपकार करने में कई मूर्ख, मिथ्यात्वी धर्म बताते हैं । वे जिनेश्वर देव के धर्म की पहचान किए बिना ही मनचाही गप्पें हांकते हैं। ३८. जितने सांसारिक उपकार हैं, वे सब मोहवश किए जाते हैं। साधु तो उनकी कभी सराहना नहीं करते। सांसारिक जीव ही उनका व्याख्यान करेंगे। ३९. सांसारिक उपकार करने में जैनधर्म का अंश भी नहीं है । सांसारिक उपकार करने में जो धर्म कहते हैं । वे मूढ़ और गंवार हैं। 1

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