Book Title: Acharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ३२. दोय इंदर आया कोणक री भीड़ी, कोणक रें साता कर दीधी तांम। एक कोड़ असी लाख मिनखां में मारे, कोणक रो सुधारयों काम।
ओ तो उपगार संसार तणों छे॥
३३. एकीका जीव ने अनंती वार वचाया,
त्यां पिण इणनें अनंती वार वचायो। आंमा सांहमां उपगार संसार ना कीधा,
___ त्यां सूं तो जीव री गरज सरी नही कायो।
ओ तो उपगार संसार तणों छे॥
३४. हांती नेतादिक देवे आंमा सांहमा, लाडू कोपरादिक देवें आमा सांहमा। अथवा कोयक आघाइ पिण देवें, इत्यादिक , अनेक संसार नां कांमा।
ओ तो उपगार संसार तणों छे॥
३५. संसार नों उपगार करें जिण सेती, कदा ते पिण पाछों करे उपगार। ए तो उपगार एकीका जीवां सं, कीधा छे अनंत अनंती वार।
आ सरधा श्री जिणवर भाखी॥
३६. संसार ना उपगार सब ही फीका, ते तों थोड़ा माहे विलें होय जावें।
संसार नां उपगार फक फीका छे, त्यां सूं मुगत तणा सुख कोय न पावें॥
३७. संसार तणा उपगार कीयां में,
केइ मूढ़ मिथ्याती धर्म वतावें। त्यां श्री जिण मारग ओळखीयां विण,
मन माने ज्यूं गाळां रा गोळा चलावें॥
३८. जितला उपगार संसार तणा छे, जे जे करे ते मोह वस जांणों।
साधु तो त्यांनें कदे न सरावें, संसारी जीव तिण रा करसी बखांणों॥
३९. संसार तणा उपगार कीयां में, जिण धर्म रो अंस नही , लिगार।
संसार तणा उपगार कीयां में, धर्म कहे ते तों मूढ़ गिंवार॥

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