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अनुकम्पा री चौपई
३११ २९. झूठ, कपट के द्वारा उस पापी ने मिथ्या शासन की स्थापना की। स्वयं तीर्थंकर न होते हुए भी तीर्थंकर कहलाया और महावीर के शासन को उत्थापित किया।
३०. भगवान के द्वारा गोशालक को बचाने के बाद बहुत सारे लोगों का बिगाड़ हुआ। वह पापात्मा तो धर्म का डाकू था। इसने गुण तो किंचित भी नहीं किया।
__३१. बचने के बाद उस पापी ने अनेक अकार्य किए। उस दुष्ट को बचाने में धर्म कैसे हुआ? विवेक शून्य लोगों को जरा भी संकोच नहीं होता।
३२. गोशालक को बचाने में धर्म कहने वाले उनके ही अनुगामी हो सकते हैं। उन्होंने जिनेश्वर देव के धर्म को नहीं समझा है ।अज्ञानी यों ही खींचातान करके डूब रहे हैं।
३३. यदि गोशालक को बचाने में धर्म होता तो छह ही काय के जीवों को बचाने में धर्म होगा। यदि उन जीवों को बचाने में वे धर्म नहीं मानते तो विवेक शून्य लोगों की श्रद्धा का भ्रम निकल जाता है।
३४. जिस विधि से भगवान महावीर ने गोशालक को बचाया, उस विधि से श्रावकों को नहीं बचाते । जैसा कहते हैं वैसा करते नहीं तो उनकी श्रद्धा में धूल है।
३५. सौ श्रावकों का पेट दर्द कर रहा है। शरीर और प्राण अलग हो रहे हैं। उस समय साधु आए, यदि वे पेट पर हाथ फिराएं तो साता हो सकती है।
३६. लब्धिधारी साधुओं को आए देखकर गृहस्थों ने कहा-उनके पेट पर हाथ फिराएं, नहीं तो वे श्रावक मर जाएंगे।