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अनुकम्पा री चौपई
३१७ ५१. एक गोशालक को भगवान ने बचाया, यह तो निश्चय में होनहार थी। भगवान को मोहानुराग आया था, इस न्याय को मूर्ख नहीं समझ सकते।
५२. सं. १८५३, आषाढ़ कृष्णा एकादशी, मंगलवार के दिन कुपात्र गोशालक की पहचान के लिए मांढ़ा गांव में यह रचना हुई।