Book Title: Acharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 325
________________ अनुकम्पा री चौपई ३१५ ४४. श्रावक में ज्ञान, दर्शन और देश चरित्र तीनों होते हैं। गोशालक तो एकांत अधर्मी था। उसे बचाने में धर्म कैसे होगा ? मूर्ख अज्ञानी लोग इस न्याय को नहीं समझते। ४५. गोशालक को बचाया इसमें धर्म कहते हैं और श्रावकों को बचाने में पाप । विवेक रहित लोगों के घट में इतना अंधेरा है। उन्होंने विपरीत श्रद्धा की स्थापना करली है। ४६. बारह वर्ष और तेरह पक्ष तक भगवान छद्मस्थ रहे। उस अवस्था में केवल एक गोशालक को बचाया और किसी को नहीं बचाया । ४७. यदि गोशालक को बचाने में भगवान कोई धर्म समझते तो अपने दोनों ही साधुओं को बचाते और रात दिन यही काम करते । ४८. दुष्ट गोशालक को बचाया, उसमें जिनेश्वर देव ने धर्म जाना, परन्तु अपने मरते दो संतों को नहीं बचाया। यह न्याय कैसे मिलेगा ? । ४९. भगवान ने अकाल मृत्यु से मरते जगत को देखा, परन्तु उन्होंने कभी उनके संरक्षण के लिए हाथ नहीं बढ़ाया। धर्म होता तो भगवान विलम्ब नहीं करते, क्योंकि भगवान तो निश्चय में तरण तारणहार होते हैं । ५०. अनंत चौबीसियां तो पहले हो चुकी हैं, और ऋषभ आदि चौबीसतीर्थंकर अब हुए हैं। उन सभी ने भव्य जीवों को प्रतिबोध देकर तारा, परन्तु उन्हें मरने से बचाने का प्रयत्न कभी नहीं किया ।

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