Book Title: Acharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
Publisher: Jain Vishva Bharati
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३२०
२.
भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ गिनांन दर्शण चारित ने तप,
यां च्यांरा विना कोइ करें उपगार। तिणनें निश्इ धर्म नही जिण भाख्यों,
वले जिण आगना पिण नही छे लिगार।
ओ तो उपगार संसार तणों छ ।
३. संसार तणों उपगार करें छे, तिणरें निश्चेंइ संसार वधतो जाणों। मोक्ष तणो उपगार करें त्यानें, निश्चेंइ नेडी होसी निरवांणों।
ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥
४.
कोइ दलदरी जीव नें धनवंत कर दें, नव जात रों परिग्रहो देइ भरपूर रे। वले विविध प्रकारें साता उपजावें, उण रो जाबक दलदर कर दें दूर।
ओ तो उपगार संसार तणों छे॥
५. छ काय रा सस्त्र जीव इविरती, त्यांरी साता पूछी में साता उपजावें। त्यांरी करें वीयावच विविध प्रकारें, तिणनें तीर्थंकर देव तो नही सरावें।
ओ तो उपगार संसार तणों छे॥
६. ग्रहस्थ री साता पूछ्यां वीयावच कीधां,
तिणसूं साध तो होय जाों अणाचारी। तो त्यांरी साता पूछ्यां नें वीयावच कीयां में,
जिण आगनां पिण नही , लिगारी।
ओ तो उपगार संसार तणों छे॥
७. साता पूछयां तो साधु नें पाप लागें ,,
तो साता कीधां में धर्म किहां थी होवें। पिण मूढ़ मिथ्याती ववेक रा विकल,
ते श्रीजिण आज्ञा साहमों न जोवें।
ओ तो उपगार संसार तणों छे॥

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