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अनुकम्पा री चौपई
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२. ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इन चारों के बिना कोई भी उपकार करता है, उसमें निश्चय ही न तो जिनेश्वर देव प्ररूपित धर्म है और न जिनेश्वर देव की किंचित आज्ञा है । यह उपकार सांसारिक है ।
३. जो सांसारिक उपकार करता है, उसके निश्चित संसार बढ़ता है। जो मोक्ष का उपकार (आध्यात्मिक) करने वाला है, उसके निश्चित ही निर्वाण निकट होता है । यह निश्चित ही मोक्ष का उपकार है ।
४. किसी दरिद्र व्यक्ति को नव प्रकार का भरपूर परिग्रह देकर उसको धनवान बना दे और विविध प्रकार की उसे साता (सुख) पहुंचाए एवं उसकी सम्पूर्ण दरिद्रता दूर कर दे, यह उपकार सांसारिक है।
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अव्रती जीव षट्कायिक जीवों के शस्त्र होते हैं। उनका कुशलक्षेम पूछे, उन्हें साता - सुख प्रदान करे तथा उनकी विविध प्रकार से सेवा करे। उस कार्य की तीर्थंकर भगवान तो प्रशंसा नहीं करते, यह उपकार सांसारिक है। .
६. गृहस्थ का कुशलक्षेम पूछने एवं उनकी सेवा करने से साधु अनाचारी हो जाता है। उसकी साता पूछने में तथा सेवा करने में जिनेश्वर देव की बिल्कुल भी आज्ञा नहीं है, यह उपकार सांसारिक है।
७. कुशलक्षेम पूछने में साधु को यदि पाप लगता है तो उसका कुशलक्षेम करने में धर्म कहां से होगा ? किन्तु मूर्ख, मिथ्यात्वी, विवेक भ्रष्ट लोग जिनेश्वर देव की आज्ञा की ओर नहीं देखते, यह उपकार सांसारिक है।