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अनुकम्पा री चौपई
२१. गोशालक को जिस दिन बचाया उस दिन भगवान छद्मस्थ थे। उस दिन भगवान को मोहराग आया, निश्चित भवितव्यता को टालना आसान नहीं है।
२२. छद्मस्थ अवस्था में भगवान के प्रतिसमय सात कर्म लगते थे। मोहकर्म का विशेष उदय हुआ तो उन्होंने कुपात्र गोशालक को साक्षात् बचा लिया।
२३. गोशालक जैन धर्म के लिए दावानल था। वह दुष्टों में अतिदुष्ट और कूड़-कपट का थैला था। उसे बचाने का क्या फल हुआ-भव्यजनों। ध्यान से सुनें।
२४. गोशालक ने तेजोलेश्या को छोड़कर दो साधुओं को मार डाला। वह भगवान से उल्टा-सीधा बोलने लगा और भगवान के साथ मिथ्यात्व का व्यवहार किया। कुपात्र को बचाने से धर्म कहां से होगा।
२५. इसके बाद उसने भगवान की घात सुनिश्चित करने के लिए तेजोलेश्या का प्रयोग किया। उसने सोचा मैं अपना शासन स्थिर करूं । ऐसा दुष्ट एवं कुपात्र था गोशाला।
२६. तिल के विषय में प्रश्न पूछने पर भगवान ने कहा-फली में सात तिल हैं। तब पापी गोशालक ने भगवान महावीर को झूठा करने के लिये तिल के पौधे को उखाड़कर उसे नष्ट कर दिया। ऐसे पापी को बचाने में धर्म कहां से होगा?।
२७. भगवान ने गोशालक को तेजोलेश्या की विधि बतलायी। उसी तेजोलेश्या से उसने साधुओं की घात की और भगवान के लोहीठाण-रक्तस्राव किया। ऐसे कार्य उस पापी गोशालक ने साक्षात् किए।
२८. गोशालक को भगवान ने बचाया, उससे भरत क्षेत्र में बहुत मिथ्यात्व बढ़ा। उस पापात्मा ने बहुत लोगों के हृदय में विपरीत श्रद्धा डाल कर उन्हें डुबो दिया।