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अनुकम्पा री चौपई
३०५ ६. संसारवर्ती सभी चोरों से गोशालक निश्चय ही बड़ा चोर था। वह झूठ और कपट का थैला था। उसके मिथ्यात्व का बहुत कठोर डंक लगा हुआ था।
७. उसे जलता हुआ जानकर भगवान ने शीतल तेजोलेश्या से बचाया। उस पापात्मा के प्रति भगवान को रागभाव आया। छद्मस्थ होने के कारण भगवान उस समय चूक गए।
८. कुछ व्रतभ्रष्ट वेशधारी ऐसी बात कहते हैं, गोशालक को बचाने में धर्म हुआ। उन्होंने जिनेश्वर देव के धर्म को नहीं पहचाना। वे तो अज्ञानी भ्रम में भूल रहे
९. और वे लोग कहते हैं भगवान ने गृह त्याग के बाद कभी किंचित् भी दोष का सेवन नहीं किया तथा प्रमाद और अन्य किसी आश्रव का कभी आसेवन नहीं किया।
१०. ऐसा बार बार कहकर वे स्वयं सत्यवादी बनते हैं। परन्तु वे एकांत असत्य बोलते हैं। उन्होंने जिनेश्वर देव के धर्म को नहीं पहचाना है। फूटे ढोल की तरह वे विरूप वचन बोलते हैं।
११. वे सुध बुध भूलकर झूठ बोलते हैं। उन्हें अपनी मान्यता का भी पता नहीं है। मैं उन विकल लोगों की श्रद्धा को प्रगट करता हूं। भव्यजनों। ध्यान लगाकर
सुनें।
१२. भगवान जानकर आहार करते थे। उसे वे प्रमाद और पापाश्रव (अशुभ आश्रव) कहते हैं। निद्रा लेने में भी पाप बताते हैं, जबकि भगवान ने नींद भी ली थी।