Book Title: Acharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
दूहा
१. नमूं वीर सासण धणी, गणधर गोतम सांम।
त्यां मोटा पुरषां रा नाम थी, सीझें आतम कांम॥
२. त्यां घर छोडे संजम लीयों, भगवंत श्री विरधमांन।
बारें वरस ने तेरें पक्षे, छदमस्थ रह्या भगवांन॥
३. त्यां गोसाला ने चेलो कीयो, ते तों निश्चें अजोग साख्यात।
सराग भाव आयों तेह थी, ते पिण छदमस्थ पणा री वात॥
४. तीथंकर साध छदमस्थ थका, चेलों न करें दीख्या देवें नांहि।
धर्मकथा पिण कहे नही, नवमें ठाणे अर्थ माहि॥
५. बारें वरस में तेरे पक्ष मझे, दीख्या दे चेलों न करयो कोय।
एक गोसाला अजोग ने चेलों कीयों, निश्चें होणहार टलें नही सोय॥
६. तीर्थंकर साथे दीख्या लीयें, तिणनें दीख्या दे जिणराय।
पछे केवली हुवें नही त्यां लगें, किण में दीख्या न देवें त्याहि॥
७. गोसाला में वीर वचावीयो, छदमस्थ पणा रो सभाव।
मोह राग आयों तिण उपरे, तिणरो विकल न जाणे न्याव॥
गोसाला में वीर बचावीयों, तिणनों मूर्ख थापें धर्म। सूनें चित बकबो करें, ते भूला अग्यांनी भर्म॥

Page Navigation
1 ... 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364