Book Title: Acharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 308
________________ २९८ भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ६८. कोई मिनख आंतरीयों छे तिण कालें, धन उदकें थानक काजो जी। ___ जो उ पाप जाणे तो परभव जातें, इसडों कांय कीयों अकाजो जी॥ ६९. घर रो धन देने जीव मराया, ते अर्थ न दीसें कांई जी। अनर्थ पिण जांण्यों नही दीसें, धर्म जांण्यों दीसें तिण मांही जी॥ ७०. हिंसा री करणी में दया नही छे, दया री करणी में हिंसा नाही जी। दया में हंसा री करणी छे न्यारी, ज्यूं तावडो में छांही जी॥ ७१. ओर वसत में भेल हुवें पिण, दया में नही हिंसा रो भेलो जी। ज्यूं पूर्व में पिछम रों मारग, किण विध खाये मेलो जी॥ ७२. केई दया ने हिंसा री मिश्र करणी कहे, ते कूडा कुहेत लगावें जी। मिश्र थापण नें मूढ मिथ्याती, भोला लोकां नें भरमा जी॥ ७३. जो हिंसा कीयां थी मिश्र हुवें तो, मिश्र हुवे पाप अठारो जी। __एक फिरयां अठारे फिरे छे, कोइ बुधवंत करजो विचारो जी॥ ७४. जिण मारग री नींव दया पर, खोजी हुवे ते पावें जी। जो हिंसा मांहें धर्म हुवे तो, जल मथीयां घी आवें जी॥ ७५. संवत अठारें वरस चमाले, फागुण सुद नवमीं रिववारो जी। जोड़ कीधी दया धर्म दीपावण, बगड़ी सहर मझारो जी॥

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